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लघुकथा

समयाभाव

अनिता रश्मि   |   Autumn 2025

फेसबुक पर प्रतियोगिता सी चल पड़ी थी। क्षणांश में एक नई पोस्ट। उसमें अनेक फोटो भी शामिल थे। रंग बदलते बादल के, चित्रकार सूर्य के, पेड़ों के, पर्वतराज हिमालय के, लुभाते आकर्षक धरोहरों के, हहराते ठाँठें मारते रत्नाकर के, सर्पिणी सी लहराती सरिताओं के, आनन के, कानन के। और भी बहुतेरे...अनगिन के।

ऐसे वक्त में व्यथित सुनील ने सबको खबर पहुँचाने के लिए आज फेसबुक पर पिता जी की मृत देह और माला चढ़ी तस्वीर अपलोड की थी। अगल-बगल से अगरबत्तियों की धूम्र रेख ऊपर की ओर बढ़ती हुई ताजे शव का प्रमाण थीं।

सबसे अधिक लाइक्स उस फोटो को ही मिले थे।

एक बहन ने अपने भाई को फोन किया।

“तुम उनके घर गए क्यों नहीं? या फिर पोस्ट पर श्रद्धांजलि के दो शब्द ही लिख देते। उन्हें सांत्वना मिलती।”


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अनिता रश्मि