पुस्तक- मिथक और लोककथा गारो पहाड़ियों से

लेखन- श्रीमती सी. टी. संगमा

अनुवाद- डॉ अनीता पंडा

प्रकाशक- सन्मति पब्लीशर्स ऐंड डिट्रीब्यूटर्स, हापुड़ (उ.प्र.)

मेघालय में अवस्थित गारो पहाड़ियाँ और उनसे उपजे मिथक आज भी जुबान पर थिरकते हुए अनायास ही अपनी ओर खींचते हैं। इसको शिद्दत से अनुभूत किया अवकाश प्राप्त राज्य प्रशासनिक अधिकारी, मेघालय सरकार और ख्यातिलब्ध लेखिका श्रीमती सी.टी. संगमा ने। तत्पश्चात शिलॉंग (शिवलिंग) में तीन दशकों से शिक्षण/प्रशिक्षण, शोध और लेखन में अग्रणी रहीं डॉ अनीता पंडा ने श्री मती संगमा द्वारा लिखित “Myriad Colours Of North East – 1,2,3” को आधार बनाकर चिंतन के ताने-बाने से वितान बुना। डॉ अनीता पंडा जी ने राजभाषा हिंदी में न केवल अनुवाद किया बल्कि स्वाध्ययन, अवलोकन एवं जनश्रुतियों द्वारा प्रत्युत्पन्न निष्कर्ष से कथा-विन्यास विकसित किया।

इस पुस्तक में पौराणिक एवं मिथक, शौर्य कथाएँ, लोक कथाएँ, प्रेम कथाएँ तथा रहस्यमयी कथाओं सहित 5 अध्याय निहित हैं। लेखिका ने सदैव अनुवाद की मूल संचेतना को सुरक्षित एवं संरक्षित रखा है। प्रो. दिनेश कुमार चौबे ने अनुवाद के बारे में बहुत स्पष्ट मत रखते हुए कहा है कि अनुवाद का मतलब परकाया में प्रवेश है। दूसरे शब्दों में ‘एकात्म’ हो जाना अनुवाद का आवश्यक गुण एवं आवश्यकता है। अनुवादक लेखिका ने इसके प्रति सजगता का परिचय दिया है। यद्यपि भाषा के रूप में हिंदी व्यवहृत है तथापि स्थानीय जीवन, संस्कृति, गाथा एवं मिथक के साथ तादात्म्य में कमी नहीं आने दी गई, जो अनुभवी लेखिका की कुशल लेखनी की पुष्टि हेतु पर्याप्त है।

मिथक क्या है? जानना महत्वपूर्ण है और आवश्यक भी विशेषतः इस पुस्तक के संदर्भ में। मिथक परम्परागत या अनुश्रुत कथा है जो किसी अतिमानवीय तथाकथित प्राणी या घटना से सम्बंध रखती है। विशेषतः इसका सम्बंध देवताओं, विश्व की उत्पत्ति तथा विश्वासों से है। यह एक ऐसा विश्वास है जो बिना तर्क के स्वीकार किया जाता है। प्रसाद जी की कामायनी के मूल्यांकन से हिंदी साहित्य में मिथक पर विचार का प्रारम्भ माना जाता है। दूसरे शब्दों में लेखन को एक मिथकीय प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया गया है। जैसा कि डॉ नगेन्द्र ने कहा था कि ‘……नये कवि वर्तमान के अतीतत्व और अतीत के वर्तमानता में विश्वास करते हैं’, डॉ अनीता पंडा ने अनुवाद करते समय मिथक की इस विशेषता को पूर्णतः सिद्ध करते हुए संरक्षित किया है।

बंदर, मकड़ा, सियार, जुगनू, हाथी, लंगूर, सूअर, कुत्ता, मुर्गी और मेंढक आदि जीव-जंतुओं और कुछ लड़के/लड़कियों के चरित्रों के माध्यम से सुदक्ष लेखिका/अनुवादिका ने लोककथा को नवजीवन और नूतन कलेवर प्रदान किया है। बंदर की नकलची प्रकृति और फलस्वरूप असफलता की ओर भी बारम्बार इंगित किया गया है। लोककथा किसी मानव-समूह की उस साझी अभियक्ति को कहते हैं जो लोककथाओं, कहावतों, चुटकुलों आदि अनेक रूपों में अभिव्यक्त होता है। इस पुस्तक में पैनी नजर और बेबाकीपन से इसका अनुपालन किया गया है। डॉ अनीता जी ने गारो पहाड़ियों की मूल संज्ञा को हिंदी शब्दार्थ के साथ सजाया है जिससे पाठक बिना भटकाव के सटीक एवं वांछित छवि बना सके। बाल्पक्रम की खूबसूरती, चमत्कार, किंवदंती, मिथकाधारित लोककथा पर लेखनीचलाते हुए अनुवादिका ने देखी और सुनी बातों में फर्क के प्रति पूर्ण सजगता का परिचय दिया है।

यह पुस्तक लेखिका श्रीमती संगमा और अनुवादिका श्रीमती पंडा के सान्द्रित शोध का सकारात्मक परिणाम है। पाठकों के चक्षु – पटल पर गारों पहाड़ियाँ जीवंत हो उठती हैं। संस्कृति, सोच और दिनचर्या सजीव हो जाती हैं। पुस्तक का आकर्षक आवरण और सुरुचिकर विषयवस्तु पाठक-हृदय को संतृप्त करते हैं और अतिरिक्त गहन शोध हेतु प्रेरित भी।

पुस्तक- मिथक और लोककथा गारो पहाड़ियों से

लेखन- श्रीमती सी. टी. संगमा

अनुवाद- डॉ अनीता पंडा

प्रकाशक- सन्मति पब्लीशर्स ऐंड डिट्रीब्यूटर्स, हापुड़ (उ.प्र.)

प्रकाशन वर्ष- 2020

पृष्ठ-114

मूल्य- रुपये 135/-

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