डेजी शर्मा


पुस्तक- साक्षात्कार: संभावना और यथार्थ (पूर्वोत्तर के हिंदी रचनाधर्मियों से साक्षात्कार)
लेखन – पंकज मिश्र ‘अटल’
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)
प्रकाशन वर्ष – जुलाई 2020
पूर्वोत्तर का नाम लेते ही एक सुंदर और मनोरम जगह का एहसास होता है। असम से लेकर मणिपुर तक पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में जनजातीय लोगों तथा शेष अन्य जातियों के लोगों ने अपनी साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को संभाल कर और संजो कर रखा है।
यहाँ पूर्वात्तर में अनेक ऐसे महान व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अपनी कलाकारी से, अपने लेखन से, अपने अन्य योगदानों से पूर्वात्तर के राज्यों को प्रगति और प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचाया है।
यहाँ ढेरों ऐसे प्रतिभाशाली लोग हैं, लेकिन कुछ तो हमेशा पर्दे के पीछे ही रहे हैं। ऐसे ही लोगों की सोच को, उनके हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति योगदान को हमारे सामने साक्षात करने की कोशिश की है पंकज मिश्र ‘अटल’ जी ने।
पंकज जी ने साक्षात्कारः संभावना और यथार्थ नामक पुस्तक के माध्यम से पूर्वोत्तर भारत में हिंदी लेखन को भी एक नई दिशा देने की पहल की है। पुस्तक में उन्नीस रचनाकारों की मनोवृत्ति को, उनके हिंदी में लेखन को उजागर किया गया है। पंकज जी मानते हैं कि अगर वे यहाँ के रचनाकारों से जुड़ेंगे, तो यहाँ की मिट्टी से जुड़ेंगे। रचनाओं के माध्यम से यह जानने की चेष्टा की गई है कि यहाँ अर्थात पूर्वात्तर के आठों राज्यों में हिंदी के विकास की संभावनाएँ यदि हैं तो किन रूपों में हैं।
अनुवाद के माध्यम से भी यहाँ की सभ्यता, संस्कृति दूर-दूर तक जा चुकी है। कुल मिलाकर इस पुस्तक के माध्यम से हम विभिन्न कलमकारों के विचारो से अवगत होंगे। पुस्तकें तो हम कई पढ़ते हैं, लेकिन कई साक्षात्कारों को एक साथ किसी धागे में मोतियों की तरह पिरोना एक नई पहल के रूप में ही है यह साक्षात्कारों पर केंद्रित पुस्तक।
पंकज जी ने इसको एक नया रूप दिया है। वर्तमान में पंकज मिश्र ‘अटल’ असम के बरपेटा में जवाहर नवोदय विद्यालय में कार्यरत हैं और अपनी लेखनी से हिंदी के विकास के पथ पर अग्रसर हैं।
पंकज जी विशेषकर अतुकांत कविता, नवगीत और समीक्षात्मक लेख लिखते हैं। बाल साहित्य में भी उनकी लेखनी चली है। ये आकाशवाणी से भी जुड़े हुए हैं।
आइए, पुस्तक की गहराइयों में अवगाहन करते हैं। सबसे पहले मैं इसकी भूमिका पर अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ। इसमें पूर्वोत्तर के कई रचनाधर्मियों से लिए गए साक्षात्कार हैं। यहाँ पूर्वोत्तर के आठों राज्यों के रचनाकारों को समेटा गया है। इन साक्षात्कारों में अगर अतीत का विवरण है, तो वर्तमान की विवेचना और व्याख्या भी निहित है तथा भविष्य में झाँकने की जिजीविषा भी समाहित है। पंकज जी ने अपनी कलम से इन साक्षात्कारों में ऐसी जान फूँकी हैं कि पाठक उनकी लेखनी में डूब जाएंगे।
पहला साक्षात्कार अरूणाचल प्रदेश की लेखिका डॉ. जमुना बीनी तादर का है। पढ़ने के बाद हम लेखिका के व्यक्तित्व, कृतित्व और विचारधारा से रूबरू होंगे। दूसरा साक्षात्कार सिलचर के रचनाकार गुलशन राय मोंगा का हैं, जो कि एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में वर्तमान व्यवस्था, सामाजिक विकृतियों और नारी शोषण के खिलाफ हुंकार दिखाई देती है। वहीं डॉ. देवेन चंद्र ‘सुदामा’, रूनू बरुवा ‘रागिनी तेजस्वी’, मदन सिंघल, कुंतला दत्त, किशोर कुमार जैन, जीना बरुवा, सौमित्रम्, हरकीरत हीर, डॉ. प्रवीन कोच, डॉ. नवकांत शर्मा, एमी मेहजाफी हुसैन ‘आयशा’, डॉ. बी.पी. फ़िलिप जुविचु, राधा गोविंद थोंडाम ‘कविराज’, ड़ॉ. अनिता पंडा, डॉ. वानलाल रेमरूअता राल्ते, अर्जुन चामलिड. ‘यावा’, रमेंद्र कुमार पाल के विचारों को पढ़ लेते हैं तो हम समग्र पूर्वोत्तर को जान जाएंगे। इस प्रकार यह पुस्तक अपने नए सोच और विचारों के साथ हमारे सामने आई है।
पंकज जी ने इन समस्त साक्षात्कारों के माध्यम से पूरे पूर्वोत्तर को साहित्यिक दृष्टि से एक धागे में पिरो दिया है, जो कि एक अनूठा कार्य है।
पंकज मिश्र ‘अटल’ द्वारा पूर्वात्तर भारत में हिंदी की स्थिति, हिंदी में लेखन, अनुवाद कार्य की स्थिति आदि को स्वयं जानने और पूर्वात्तर में हिंदी में हो रहे लेखन से शेष भारत के बुद्धिजीवियों और हिंदी रचनाधर्मियों से परिचित कराने हेतु किया गया यह कार्य पूर्वात्तर के तमाम साहित्यिक संदर्भों में अपना विशेष स्थान और महत्व रखता है। इस प्रकार कई लेखकों को एक साथ एक जगह पर प्रस्तुत करना, वह भी अलग-अलग राज्यो से, एक दुर्लभ कार्य है।
पंकज मिश्र ‘अटल’ ने बुद्धिजीवियों द्वारा साक्षात्कारों के रूप में दिए गए विवरण के अलावा इस पुस्तक की भूमिका में समग्र पूर्वोत्तर को ही व्याख्यायित सा कर दिया है। आपने पूर्वोत्तर भारत में जो जनजातीय भाषाएं हैं उनके साहित्य, उनकी भाषाओं, बोलियों, उन भाषाओं में जो साहित्य है उसके हिंदी में अनुवाद की स्थिति, पूर्वोत्तर की बहुरंगी संस्कृति, लोकसाहित्य, और हिंदी में हो रहे लेखन की गुणात्मकता तथा क्षेत्रीय भाषाओं में हिंदी साहित्य के अनुवाद की स्थिति को भी उभारने की चेष्टा की है।
पंकज मिश्र ‘अटल’ ने भूमिका के माध्यम से ही इस पुस्तक और इस वृहद कार्य के सन्दर्भ में अपने मनोभाव और कार्य की महत्ता और अवश्यकता को भी स्पष्ट कर दिया है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि बहुत से स्थापितों के साथ नए हस्ताक्षरों को भी आपने राष्ट्रीय फलक पर अपने आपको स्थापित करने और साबित करने हेतु अवसर भी दिया है, कहीं न कहीं साक्षात्कारों के माध्यम से पूर्वोत्तर भारत के ये रचनाकर पूर्वोत्तर में बुद्धिजीवियों के मध्य चर्चा में आए, उनकी पहचान को मजबूती मिली और विस्तृत साहित्यिक फलक भी मिल सका।
साक्षत्कार विधा को चुनने के संदर्भ में पंकज मिश्र ने कहा है कि, “मेरा ध्यान सीधे-सीधे साक्षात्कार विधा की ओर गया, क्योंकि साक्षात्कार विधा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्तित्व से कृतित्व तक की गहराइयों का अवगाहन किया जा सकता है, आदर्श से यथार्थ तक की दूरी तय की जा सकती है, और किसी भी व्यक्ति के योगदान को सूक्ष्मता से विश्लेषित और व्याख्यायित भी कर सकते हैं।”
पंकज मिश्र ‘अटल’ इस पुस्तक के संदर्भ में अपने उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि, “इस पुस्तक के माध्यम से मैं कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों को आधार बनाकर चला हूं। इन उद्देश्यों में पूर्वोत्तर में हिंदी की जमीनी हकीकत को जानना, हिंदी के संदर्भ में किए जा रहे प्रयासों को परखना, पूर्वोत्तर के हिन्दी लेखन पर समीक्षात्मक चर्चा करना, पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य तथा जनजातीय लोक साहित्य के हिंदी में हो रहे अनुवाद से जुड़कर अनुवाद तथा अनूदित साहित्य पर विश्लेषणात्मक और विवेचनातमक संवाद करना आदि मुख्य हैं।”
अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि पूर्वोत्तर में हिंदी लेखन और हिंदी के प्रचार तथा प्रसार की अपार संभावनाएँ हैं।
अगर इस प्रकार के साहित्यिक कार्य होते रहे, तो पूर्वोत्तर किसी भी परिचय के लिए मोहताज नहीं रहेगा और यहाँ के भी रचनाकारों की गिनती पूरे भारतवर्ष में होने लगेगी।
अंततः मैं यही कहना चाहती हूं कि साक्षात्कार विधा पर जारी यह पुस्तक जिन मन्तव्यों और संदर्भों को केंद्र में रखकर लिखी गई और प्रकशित की गई है, पूर्ण रूप से पूर्वोत्तर भारत में हिंदी की वास्तविकता को जानने और समझने में सहायक है।
शोधार्थियों को पूर्वोत्तर में हिंदी लेखन के सन्दर्भ में यह पुस्तक सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में मार्गदर्शन भी करेगी। पंकज मिश्र ‘अटल’ ने पूर्वोत्तर भारत काफ़ी गहराई और गंभीरता के साथ न केवल स्वयं महसूस किया है अपितु साक्षात्कार विधा की इस पुस्तक को पूर्वोत्तर वासियों और शेष भारत के तमाम-तमाम बुद्धिजीवियों तक पहुँचा कर बौद्धिक स्तर पर पूर्वोत्तर और शेष भारत के प्रबुद्ध वर्ग को, साहित्यिक समाज को एक-दूसरे को समझने और एक-दूसरे से जुड़ने में सेतु की भूमिका भी निभाई है।
पूर्वोत्तर भारत में हिंदी भाषा और साहित्य की स्थिति को जानने और परखने की मनोभावना के साथ-साथ यह पुस्तक पंकज मिश्र ‘अटल’ के साहित्यिक तथा साकारात्मक सोच, पूर्वोत्तर भारत के प्रति उनकी आत्मीयता को तो उजागर करती ही है पूर्वोत्तर में हिंदी के संदर्भ में अपार संभावनाएं और हिंदी के उज्ज्वल भविष्य की ओर भी संकेत करती है। क्योंकि पंकज मिश्र ‘अटल’ की मनोभावनाओं और पुस्तक के संदर्भ में निहित विचारों को समाहित करते हुए आगे बँढ़ू तो बेहतर होगा।
पंकज मिश्र ‘अटल’ लिखते हैं कि, “पुस्तक ‘साक्षात्कार: संभावना और यथार्थ (पूर्वोत्तर में हिंदी रचनाधर्मियों से साक्षात्कार)’ पूर्वोत्तरमें हिंदी भाषा और साहित्य को लेकर चर्चा और संवाद की पर्याय मात्र न होकर नवीनतम संदर्भों में परिष्कृत दृष्टि की परिचायक है और स्वयं में अनंत अपेक्षाओं और संभावनाओं के साथ उस कल की ओर उन्मुख है जो कि पूर्वोत्तर के बुद्धिजीवियोंं, हिंदी प्रेमियों का संभावित सच है। ” पंकज मिश्र ‘अटल’ का यह कथन उनकी व्यापक दृष्टि, उनके बहुआयामी सोच और वैचारिक गहराई का द्योतक तो है ही, साथ ही साथ यह साक्षात्कार ग्रंथ इन आधारों, तथा मानकों पर भी खरा उतरता है। यही नहीं यह पुस्तक पूर्वोत्तर भारत में हिंदी को, हिंदी लेखकों और उनके लेखन को सुदृढ़ आधार भी प्रदान करता है।
निश्चय ही पूर्वोत्तर भारत के हिंदी रचनाकारों, हिंदी सेवी विद्वानों के हिंदी के प्रति योगदानों और हिंदी लेखन को साहित्य के फलक पर उकेरने और आकार देने की दृष्टि से पुस्तक “साक्षात्कार: संभावना और यथार्थ (पूर्वोत्तर के हिंदी रचनाधर्मियों से साक्षात्कार)” एक महत्तवपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ तो है ही साथ-साथ पूर्वोत्तर के संदर्भों में पूर्वोत्तर वासियों को एवम शेष भारत के प्रबुद्ध वर्ग को पंकज मिश्र ‘अटल’ की अप्रतिम साहित्यिक भेंट भी है।

डेजी शर्मा जी स्वयं एक लेखिका भी हैं, अनुवाद विधा में भी आपकी विशेष रुचि है, लेखन के अतिरिक्त आपकी पत्रकारिता में अभिरुचि है। आपने गुवाहाटी से प्रकाशित हो रहे हिंदी समाचार पत्रों पूर्वांचल प्रहरी तथा सेंटिनल (हिंदी) में उप सम्पादक के पद का दायित्व निर्वहन किया है।
वर्तमान में आप गुवाहाटी (आसाम) में अध्यापन के साथ लेखन भी कर रहीं हैं।