बेटी

बेटी तन की गंध है,
मन की है सरताज
लेट पिता के पेट पर,
छेड़े मन के साज
वह तो घर की लाज। ।

उसकी इक मुस्कान पर,
मात पिता न्यौछार।
बनी पिता की लाड्ली,
माता करे दुलार।
पाती सबका प्यार। ।

कटि करधनिया बाँध कर
धरे रजत मुस्कान।
पग पैजनिया बाजती
भरे धरा में जान।
वह देवी की शान। ।

दुर्गा, लक्ष्मी वो बनी,
वही सृष्टि-आधार।
बेटी बिन तो यह जगत,
लगे नुकीला-ख़ार।
बेटी पर सब वार। ।

बेटों के बाप

दुनिया भर से श्रेष्ठ हम,
बेटों के हैं बाप।
इन मूँछों के बाल तक,
गिन न सकेंगे आप। ।
बेटा काला, चेचकी,
अनपढ़, मूर्ख, गँवार।
सुन्दर, शिक्षित वधु मिले,
संग विदेशी-कार। ।
काली, मोटी, भैंस सी,
बेटी है शहजोर।
रूप खुदा की देन है,
किसका चलता जोर?
खोटी बिटिया को मिले,
पति सीधा औ’ श्रेष्ठ।
शिक्षित, शक्ति, रूप सहित,
हो सेठों का सेठ। ।
शादी बिना दहेज हो,
मैं बेटी का बाप।
पर बेटा दस लाख से,
क्यों कम आँकें आप?
नंगे, लोभी, ठग बसें,
बेटी की ससुराल।
बसते वधु के मायके,
भिखमंगे, कंगाल। ।
बेटी मेरी बहुगुणी,
लेकिन बहू, निकृष्ट।
समधिन तो प्यारी लगे,
पत्नी लगती भ्रष्ट। ।
बेटी को दामाद जब,
सैर कराता नित्य।
बड़ा गुणीं आता नजर,
लगे सुहाना -दृश्य। ।
बेटा पत्नी साथ ले,
कभी घूमने जाय।
दोनों ही बे-शर्म हैं,
शर्म बेच ली, खाय। ।
बेटी को ससुराल में,
करना पड़े न काम।
बहू निकम्मी आ गयी,
जब देखो, आराम। ।
बेटा, पत्नी पीटता,
निभा रहा पतिधर्म।
बेटी को दामाद जब,
पीटे तो दुष्कर्म?
बच्चा बहू के न हुआ,
बाँझ बहू में दोष।
बेटी कभी न माँ बनी,
पति कैसे निर्दोष?
तुम बेटों के बाप बन,
गये धर्म सब भूल।
बेटी लगती फूल सी,
बहुएँ लगतीं शूल।
“अमर” धरा पर हों नहीं,
‘गर बेटी के बाप।
बेटे सब क्वारे रहें,
तब खुद सोचो, आप ।

अमरनाथ

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