मेघा पी यादव

मैं 500 रुपए का एक नोट हूँ। मुझे ये याद नहींं की मेरा जन्म कहां और कैसे हुआ था। छोटे से बक्से में मुझे मेरे जैसे कुछ पैसे मिले थे। उनकी शक्ल बिल्कुल मेरे जैसी ही थी। हम बहुत दिनों तक एक साथ रहते थे। एक दिन अचानक से उस बक्से में बहुत रोशनी आ पड़ी और किसी ने मुझे वहाँ से निकल लिया फिर मैं जा पहुँचा किसी व्यक्ति की जेब में। दुःख बहुत था उन पैसों से जुदा होने का लेकिन नई जगह घूमने का उत्साह मुझे बहुत खुशी दे रहा था। फिर मैं उसके साथ बहुत जगह गया। कभी-कभार मैं अपना सर थोड़ा सा बाहर निकाल कर देखने की कोशिश भी कर रहा था। फिर मैं जा पहुंचा किसी अजीब से जगह में जहां पर मुझे कुछ नए दोस्त मिले। एक का नाम 2 रुपए था एक का 5 और एक का 1000 था और बाकी को मैं नहींं जानता था। मैंने उन लोगो के साथ बहुत वक्त बिताया। कुछ पैसे आते रहे और कुछ पैसे जाते रहे मेरे इस सफर में। हमेशा मानों मेरे मन में एक डर रहता था की कब मुझे भी इस परिवार से जुदा कर दिया जाएगा। एक दिन मुझे वहाँ से निकाल कर एक छोटे से बच्चे के हाथ में दे दिया गया। उस बच्चे ने मुझे बहुत प्यार से अपनी गुल्लक में पनाह दी। वहाँ पर मुझे बहुत सारे अच्छे पैसे मिले जो हमेशा खिलखिलाते रहते थे। हर सुबह वो बच्चा उस गुल्लक को बहुत जोर से हिलाया करता था और हम सब पैसे उस गुल्लक के अंदर लोट – पोट के हँसा करते थे। एक दिन अचानक से पैसों की दुनिया में जहाँ मैं बेखौफ घूम रहा था और सबके पास एक खबर पहुंची थी की सारे 500 और 1000 के नोट को मार दिया जाएगा। सब पैसे आ कर मुझे दिलासा दे रहे थे लेकिन जो डर मेरे अंदर था मैं उसको काबू नहीं कर पा रहा था। बहुत देर तक मैं इस इंतजार में था कि आज रोशनी इस गुल्लक के अंदर न आए। बहुत सारी चीखें 500 और 1000 के नोट के मुझे सुनाई दे रहे थे और इसके कारण मेरे अंदर का डर बढ़ रहा था। न चाहते हुए भी अचानक से इस गुल्लक में रोशनी आई। बच्चे ने अपने प्यार भरे हाथों—से मुझे बाहर निकाला। उसने पहली बार मुझे कसके गले लगाया और मुझसे बाते भी कर रहा था। उसने मुझसे कुछ ऐसा कहा जो शायद मैं ज़िंदगी में कभी ना भूल पाऊंगा। उसने ये कहा कि “तुम मेरी ज़िंदगी के सबसे कीमती तोहफे हो। पापा ने मुझे तुम्हे तब दिया था, जब मैं क्लास में प्रथम आया था। तुम चुपचाप इस गुल्लक में ही रहना क्योंकि तुम्हारी कीमत 500 से कहीं ज्यादा है और तुम अनमोल हो मेरे लिए।”

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