ओ जिन्दगी देखा है मैंने अक्सर,
तू नहीं चलती हिसाब से,
परोस देती है ,
दुःख – सुख बेहिसाब
बेतरतीब,
लाखों नम आँखें,
कृशकाय जर्जर
क्षुधित उदर
आँखों की कोटरें
याचित पूँजीपतियों के द्वार
मूँगफली बांटते
दुःख पीड़ा से
बेपरवाह
मुस्कुराते, खिलखिलाते
व्यवस्था चलाते
मृत शरीर का
बोल लगाते, घोषणा करते
छीन उनकी जिंदगी
ए ज़िन्दगी, तू क्यों है
इतनी बेहिसाब?