राजकुमार जैन ‘राजन’, चित्तौड़

मुझे
उस रास्ते की तलाश है
जो बचा सके
संस्कारों की दरकती हुई
सीमा रेखा को
और जो याद दिलाए
लोगों को
क्षणभंगुर अस्तित्व की
मुझे अपनी जिंदगी से
बहुत उम्मीदें हैं
अपने मन की
अबोध शाखाओं में उगे
बड़े-बड़े सपनों को
सच होते देखना चाहता हूँ
मुझमें है उद्भट संघर्षशीलता
उन्मुक्त जिजीविषा
और हिलोरें मारता जुनून
पता नहीं जीवन क्रम
कहाँ टूट जाये
मैं अपने
हिमालयी अहसासों के साथ
देश व समाज के लिए
कांटों से खुद को बचाते हुए
मेहनत के खूब फूल
उगाना चाहता हूँ
सिरहाने पड़े ख्वाबों को
श्रम-मंत्र बनाकर
सफलता का स्वर्णिम
प्रकाश फैलाने के लिए
हमारे सपनों के
पेड़ों की टहनियाँं
छोटी होगी
तो बेवक्त सूख जायेगी
पतझड़ रचने लगेंगे षड्यंत्र
हमारा अपना होने का अर्थ
मिट जाएगा
क्योंकि सत्य सदा सत्य है
बौने सपने देखकर
मुझे बोनसाई नहीं होना!