”देख लल्ला मै तेरे लिए दो साल से चाँद सी बहू ढूंढ रही थी , पर अब तूने अपनी मर्ज़ी से शादी विदेश में कर ली चल कोई बात नहीं ,तू खुश तो हम भी खुश पर तूने तो बहू की फोटो भी नहीं भेजी अब सीधे मुंह दिखाई ही होगी । सारे मेहमान घर पर होंगे , बहू से कहना घूँघट डाल कर ही कार से उतरे । मुँह दिखाई के बाद ही पल्ला सिर से हटेगा अब इतनी रीत तो निभानी ही पड़ेगी ।’  माँ  की बातें विपिन के दिमाग में घूम रही थी । । शादी तो उसने अमेरिकन अफ्रीकन कैथरीन से कर ली पर अब अम्मा की फरमाइश पूरी करने के लिए अमेज़ाॅन से मंगाई गई रेडीमेड साड़ी में सजी जब कैथरीन के साथ वो कार से उतरा तो माँ सीता देवी तो उसका डील डौल देख कर बेहोश होते होते बची ,ऐसा विपिन ने परख लिया।

दरवाज़े पर आरती के बाद कोहबर पूजने की रस्म हुई फिर मुंह दिखाई शुरू हुई । एक एक कर मुंह देखने के बाद सभी महिलायें एक कोने में फुसफुसा कर बात कर रही थी

“हाय हाय  कोयले की खान से निकाल कर लाया है क्या ।”
“ओंठ तो ऐसे जैसे सुअरिया का मुँह ।”
 ”हथिनी लग रही है ।”
“सीता बहन जी के तो अरमानों पर बेटे ने पानी फेर दिया ।”

सभी की बातें सीता जी के कान तक भी पंहुच रही थी। अचानक से उठी बहू का घूँघट हटा दिया बोली-

 ”काली है ,मोटी है तो क्या ? यह क्यों भूल रही हो एक विदेशी लड़की मेरी खातिर साड़ी पहन कर ,सिर ढक कर इतनी देर से सारी रस्में जो उसे समझ भी नहीं आ रही होंगी पूरी कर रही है क्या कम है ?मेरा बेटा खुश है तो मैं भी खुश हूँ ।कैथरीन ,गो, चेंज योर क्लोद्ज़ । रिलेक्स इन योर रूम।”

 सीता देवी की बात सुनकर सभी महिलाओं के मुंह उतर गये और विपिन के चेहरे पर मां के लिये श्रद्धा का भाव द्विगुणित हो गया था ।

मंजु श्रीवास्तव’मन’ संप्रति भारत सरकार के राजभाषा सेवी है। आलोचना और लघुकथा संग्रह सहित १४ पुस्तकें प्रकाशित, कतिपय यंत्रस्थ। अर्द्धशताधिक लघुकथाएं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित, कुछ पाठ्यक्रम में समाविष्ट। २०२१ का राष्ट्र भाषा भूषण सम्मान से सम्मानित।