धानी चुनर ओढ़ कर धरा है मुस्काई
पीले खेत सरसों के ले रही अँगड़ाईं ।

चली बसंती बयार ऋतुराज आगमन

फिजा पे छाया खुमार महका है चमन।

पुष्पित हो रहे बाग में सुमन हैं अनंत

बेला, जूही, गुलाब खिल रहे दिगंत।

पेड़ों में लगे हैं बेर बौरा गये आम भी

हरियाली छाई चहुँ ओर झूम रही डाली।

हलधर भी प्रफुल्लित हो दे रहे हैं ताल

मना रहे बसंतोत्सव बजा रे हैं झाँझ।

माँ शारदे की करें वंदना देती विद्या ज्ञान

वीणा के मधुर स्वर में छेड़े अद्भुत तान।

हंसवाहिनी सरस्वती माता बुद्धि की दाता

मन का तिमिर दूर कर है भाग्य विधाता ।

भ्रमर, तितली, पखेरू कर रहे गुंजार

प्रकृति का स्वरूप देख कर रहे मनुहार।

ज्ञान ज्योतिस्वरूपा चेतना उर में भर दे

सद्भावों का दीप जला राग-द्वेष हर ले।

श्वेतवस्त्र धारिणी माँ के चरणों में वंदन

करते अर्चना,पूजा जय जयते बसंत।।

मंजु बंसल “मुक्ता मधुश्री”