एहसिंग खिएवताम्

मेघालय के पूर्वी खासी पहाड़ी जिला के पेनुर्स्ला खंड में उम्न्युह् त्मार नामक एक ग्राम है। यह ग्राम बांग्लादेश सीमा से लगकर स्थित है। यहाँ के ग्रामवासी में आज भी ‘उ रेन्’ के बारे में एक लोककथा प्रचलित है। यह लोककथा आज भी ग्रामवासी अपने अगले पीढ़ी को सुनाते आए है।
कहा जाता है कि कई वर्षों पूर्व ‘उ रेन्’ नामक युवक इस ग्राम में अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता था। ‘उ रेन्’ बहुत ही मेहनती तथा फुर्तीला युवक था। प्रतिदिन खेत-बागानों में काम करके शाम को घर लौटता था। इसी प्रकार रेन् का दिनचर्या होता था। एक दिन कड़ाके की धूप हो रही थी तथा रेन् को खेत में काम करते-करते थकावट का अनुभव हो रहा था। तभी रेन् खेत का काम छोड़कर पास के ‘वेइक्यान’ नदी की ओर मछ्ली पकड़ने एवं विश्रांम करने जाने लगा। मछ्ली पकड़ने में व्यस्त था तभी एकाएक उसकी दृष्टि नदी के दूसरी छोर पर गयी। एक अप्सरा सी युवती नहाकर धूप में आराम कर रही थी। मुखमंडल पर अद्भुत तेज था, अद्वितीय सुंदरता से शोभित थी, नदी की रानी सी प्रतीत हो रही थी। रेन् कुछ देर के लिए उस अद्वितीय सुंदरता को अवाक देख रहा था क्योंकि उसके नदी आने के क्रम में आज पहली बार कोई युवती इस सुनसान नदी में अकेली नहाने आई थी। अश्चार्यवश रेन् झट से नदी के उस पार चला गया और उस सुंदर युवती से पूछताछ करने लगा। दोनों ने पर्याप्त समय तक शब्दों का आदान-प्रदान किया। दोनों आपस में सहज अनुभव कर रहे थे। उनके ह्रदय में एक दूसरे के लिए प्रेम पल्लवित हो रही थी तभी युवती ने रेन् से कभी उसके एवं उसकी भावना के साथ छल न करने का वचन लिया एवं उसे अपने घर ले जाने को सहमत हो गयी। रेन् तुरंत ही उस सुंदरी के वचन को मान उसके साथ उसके घर चलने को तैयार हो गया। सुंदरी ने अपने दोनों हाथों से नदी के पानी को अलग कर अपने घर के द्वार तक का रास्ता खुला कर दिया था। रेन् की आँखों को यह घटना पहली बार अनुभव करने का अवसर प्राप्त हो रहा था तथा उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। नदी के अंदर प्रवेश करते ही पानी अपने आप फिर से जुड़ने लगा। सुंदरी का घर बहुत ही सुंदर था, साज-सज्जा की कोई दूसरा उदाहरण नहीं था। रेन् उस चकाचौंध में खोने लगा था। कुछ देर सुंदरी के साथ रहने के बाद अचानक उसे अपनी माँ का ध्यान हो आया तथा अपनी माँ से मिलने व्याकुल हो रहा था। अपनी सुंदरी को वापस आने का वचन देकर रेन् वहाँ से चलने लगा।
अपने बेटे को घर लौटते देख उसकी माँ खुशी से समा नहीं पा रही थी। रेन् को अपने सीने से लगाकर चूमने लगी। उनकी आँखों से आँसू निरंतर प्रवाहित हो रही थी। यद्यपि रेन् की माँ कुछ हैरान भी थी क्योंकि रेन् की खोज ग्रामवासी ने निरंतर तीन दिन तक की थी। रेन् अपनी सुंदरी के घर तीन दिन तक रहा था इसकी सुध उसे तनिक भी नहीं था। माँ बहुत खुश थी। रेन् अपनी माँ से सारी घटना का जिक्र करने लगा तथा अपनी माँ से उसकी बहू की पहली बार घर आने की तैयारी करने के लिए भी अनुरोध करने लगा। रेन् ने अपनी माँ से विशेष सूचना भी दिया कि जब उसकी बहू घर में प्रवेश करे तो उसकी दृष्टि में घर का झाडू नहीं आना चाहिए। रेन् की माँ वृद्ध थी। माँ ने अपने सभी सहेलियों से तैयारी की सहायता करने के लिए बुलाई। तुरंत ही घर की साफ-सफाई, सजावट, सुशोभिकरण में सब व्यस्त होने लगे थे।
अंततःवो दिन भी आ ही गया जिसकी प्रतीक्षा रेन् की माँ के साथ-साथ पूरे ग्रामवासी भी उत्सुकता से कर रहे थे। रेन् की पत्नी का ग्राम में आगमन होते ही ग्रामवासी उसे अवाक होकर देख रहे थे। उन्होने अपने सपने में भी ऐसी सुंदर स्त्री की कल्पना नहीं की थी। लोगों में काना-पुसी होने लगी। लोग आपस में बाते करने लगे कि रेन् ने एक परी से विवाह किया है। रेन् की माँ बहुत ही खुश थी। अपनी बहू का स्वागत करने लगी थी। आगे-आगे चलकर बहू को अपने घर में प्रवेश करा रही थी। अपनी सासु माँ के पीछे-पीछे चलकर बहू घर के चौखट तक पहुँच गयी थी। घर में प्रवेश कर ही रही थी तभी उसकी दृष्टि द्वार के पास कोने में रखे झाड़ू की ओर पड़ी। आहत होकर वही से पीछे मुड़ गयी। पलटते ही रेन् से कहने लगी कि यदि वह चाहता है तो अपनी माँ के साथ रह सकता है परंतु वह इस घर में क्षणभर भी रुक नहीं सकती और वहाँ से चलने लगी। रेन् धीरे-धीरे अपनी माँ के पास बढ़ा उनसे अपनी पत्नी को दिया वचन से बद्ध होने की भावना को प्रकट किया। साथ ही खासी संस्कृति से बद्ध होने का एहसास भी अपनी माँ को दिलाने लगा, जहाँ खासी परिवार का पुरुष अपनी पत्नी एवं उसके भावी संसार की रक्षा, भरण-पोषण एवं संवर्धन के लिए उसके साथ अथवा उसे लेकर अपनी माँ का घर छोडता है। अपनी माँ को दिलासा देकर कहने लगा कि यदि मैं जीवित हूँ तो वर्षा के ऋतु में आपको ‘वेइक्यान’ नदी से अंगड़ाई नुमा गूँज सुनाई देगी अतः यही गूँज मेरे जीवित होने का प्रमाण होगा। रेन् अपनी माँ को अंतिम बार सीने से लगाकर विदाई लेने लगा एवं अपनी पत्नी के घर चलने लगा।
आज भी ‘उम्न्यु-त्मार’ एवं ‘वेइक्यान’ के ग्रामवासी का मानना है कि वर्षा के ऋतु में रेन् की गूँज कभी-कभी सुनाई देता है।

सन्दर्भ-
१. Golden Vine of Ri Hynniewtrep – The Khasi Heritage : Sumar Sing Sewian : page no. 28.
२.Unbelievable : C T Sangma
३.गारो पहाड़ियों से : अनीता पंडा : pg. 10 – 12.

एहसिंग खिएवताम्
एम.फिल. शोधार्थी, नेहू

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