आलोक सिंह, सीनियर रिसर्च फेलो पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं जैसे वाक, परिकथा, बयां, समन्वय पूर्वोत्तर, लमही, अभिनव मीमांसा, अक्षर पर्व, राष्ट्रभाषा सेवक, मेघालय दर्पण, नेहू ज्योति, साहित्य वार्ता आदि पत्रिकाओं में कविताएं, समीक्षा, लेख आदि प्रकाशित।

आज मेघालय राज्य के जयंतिया हिल्स के स्वतंत्रता सेनानी उ कियांग नंगबाह की 158 वीं पुण्यतिथि है। जिन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया और लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उ कियांग नंगबाह ने अंग्रेजों के खिलाफ तब विद्रोह किया था जब खासी जयंतिया स्वतंत्र राज्य हुआ करते थे। यह वाकया उस समय का है जब 18 वीं शताब्दी में मेघालय की पहाड़ियों पर अंग्रेजी सत्ता का शासन नहीं था। वहाँ खासी और जयंतिया जनजातियाँ स्वतन्त्र रूप से निवास करती थीं। इस क्षेत्र में वर्तमान में सटे बांग्लादेश और सिलचर के 30 छोटे-छोटे राज्य थे। इनमें से एक का नाम जयन्तियापुर था। अंग्रेजों ने जब यहाँ हमला किया, तो उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के अन्तर्गत जयन्तियापुर को पहाड़ी और मैदानी भागों में बाँट दिया। इसी के साथ उन्होंने निर्धन वनवासियों का धर्मांतरण करना भी प्रारम्भ कर दिया। राज्य के शासक ने अंग्रेजों के भयवश इस विभाजन को मान लिया, पर जनता और मन्त्रिपरिषद ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने राजा के बदले उ कियांग नंगबाह को अपना नेता चुन लिया। उ कियांग नंगबाह ने जनजातीय वीरों की सेना बनाकर जोवाई क्षेत्र की ओर बढ़ रहे अंग्रेजों का मुकाबला किया और उन्हें पराजित कर दिया। पर अंग्रेजों की शक्ति असीम थी। उन्होंने 1860 में सारे क्षेत्र पर दो रुपये कर के रूप में लगा दिया। जयंतिया समाज ने इस कर का विरोध किया और इसी कारण उ कियांग नंगबाह की अगुवाई में वहां के लोगों ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उ कियांग नंगबाह की बात करें तो वह वीर योद्धा के साथ-साथ एक अच्छे बाँसुरीवादक भी थे। वह बाँसुरी की धुन के साथ लोकगीत गाते थे। इस प्रकार वह अपने समाज को तीर और तलवार उठाने का आह्नान करते थे। अंग्रेज इसे नहीं समझते थे पर स्थानीय लोग इस कारण संगठित हो गये और वेे हर स्थान पर अंग्रेजों को चुनौती देने लगे।
अब अंग्रेजों ने कर वसूली के लिए कठोर उपाय अपनाने प्रारम्भ किये तो उ कियांग नंगबाह के आह्नान पर किसी ने कर नहीं दिया। इस पर अंग्रेजों ने उन सीधे-साधे लोगों को जेलों में ठूँस दिया। इतने सब संघर्ष के बाद भी उ कियांग नंगबाह उनके हाथ नहीं लगे। वह गाँवों और पर्वतों में घूमकर देश के लिए मर मिटने को समर्पित युवकों को संगठित कर रहे थे। धीरे-धीरे उनके पास अच्छी सेना हो गयी। उ कियांग नंगबाह ने योजना बनाकर एक साथ सात स्थानों पर अंग्रेज टुकड़ियों पर हमला बोला। सभी जगह उन्हें अच्छी सफलता मिली। यद्यपि वनवासी वीरों के पास उनके परम्परागत शस्त्र ही थे; पर गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के कारण वे लाभ में रहे। वे अचानक आकर हमला करते और फिर पर्वतों में जाकर छिप जाते थे। इस प्रकार 20 माह तक लगातार युद्ध चलता रहा।अंग्रेज इन हमलों और पराजयों से परेशान हो गये। वे किसी भी कीमत पर उ कियांग नंगबाह को जिन्दा या मुर्दा पकड़ना चाहते थे। उन्होंने पैसे का लालच देकर उनके साथी उदोलोई तेरकर को अपनी ओर मिला लिया। उन दिनों उ कियांग नंगबाह बहुत घायल थे उनके साथियों ने इलाज के लिए उन्हें मुंशी गाँव में रखा हुआ था। उ कियांग नंगबाह के मित्र उदोलोई ने अंग्रेजों को यह सूचना दे दी, फिर क्या था? सैनिकों ने साइमन के नेतृत्व में मुंशी गाँव को चारों ओर से घेर लिया। उस समय उ कियांग नंगबाह की स्थिति लड़ने की बिल्कुल नहीं थी। इस कारण वह साथी नेता के अभाव मेंअंग्रेजों के सामने टिक नहीं सके। फिर भी उन्होंने समर्पण नहीं किया और युद्ध जारी रखा। अंग्रेजों ने घायल उ कियांग नंगबाह को पकड़ लिया।
उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि तुम्हारे सब सैनिक आत्मसमर्पण कर दें, तो हम तुम्हें छोड़ देंगे, पर वीर उ कियांग नंगबाह ने इसे स्वीकार नहीं किया। अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचार भी उनका मस्तक झुका नहीं पाये। अंततः अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के कारण उन्हें 30 दिसंबर 1862 को पश्चिम जयंतिया जिले के जोवाई शहर के उसममियंग में सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई। 30 दिसंबर, 1862 की शाम को जब उन्हें फांसी पर चढ़ाया जा रहा था, तो उ कियांग नंगबाह ने कुछ भविष्यवाणी करते हुए कहा, “भाइयों और बहनों, कृपया मेरे चेहरे पर ध्यान से देखें जब मैं फांसी पर मर जाऊं। यदि मेरा चेहरा पूर्व की ओर मुड़ता है, तो मेरा देश (खासी जयंतिया) अगले 100 वर्षों में विदेशी शासन से मुक्त हो जाएगा और यदि यह पश्चिम में बदल जाता है, तो यह अच्छे के लिए बंधन में रहेगा। भारत सरकार द्वारा सन 2001 में एक डाक टिकट भी उनकी याद में जारी किया गया। उनकी बहादुरी के किस्से हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे।

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