डाॅ मुक्ता
उसने सोचा... कई बार सोचा
अपने आजमाए घरेलू नुस्खों से भी काम चल सकता है
लेकिन जब बुखार बढ़ा
बढ़ती ही गई बेचैनी... बदन की सूजन
शरीर पर रेंगने लगी सुईयां
महीने की शुरुआत में ही कटौती कर सौंपनी पड़ी मोटी रकम डॉक्टर को
छोटी सी चमकदार पोटली में पाँच हजार की दवाएँ
उसे मालूम है यह एक खेल है
जो कम पैसों में नहीं खेला जा सकता
उसे दिखाई दे रही हैं वह कतारें
जिन्हें न दवा मुहैया है …न रोटी
एक व्यक्ति के इलाज के बाद –
अपनी मृत्यु-तिथि की प्रतीक्षा में गुम हो जायेंगी दवाएं…..
जिनसे अनेक का इलाज संभव था।
क्या वह दावेदार है इस चमकदार पोटली की?
कतारों में फैले सर्वहारा - हाथ
अभाव में होते जा रहे हैं ठूँठ।