नीतू थापा पुस्तक- ‘विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट’ लेखन – विशाल के सी प्रकाशक – भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, तेजपुर। प्रकाशन वर्ष – जुलाई 2021

‘हिन्दी’ एवं ‘नेपाली’ साहित्य जगत के लिए सैनिक कवि ‘विशाल के सी’ उभरते हुए ध्रुव के समान हैं। जो अपनी पकड़ लगातार हिन्दी एवं नेपाली साहित्य जगत में बनाए हुए हैं। मूलतः विशाल के सी भारत के सबसे पुराने अर्ध सैनिक बल (आसाम राइफल) में सैनिक के पद पर सेवारत हैं, किन्तु उन्हें केवल बन्दूक पकड़कर देश की सेवा करना गवारा नहींं, बल्कि वे कलम लेकर साहित्य के रणभूमि में हिन्दी एवं नेपाली भाषा के प्रचार प्रसार एवं सामाजिक उत्थान के लिए भी उतर पड़े हैं। विभिन्न सम्मानों से सम्मानित विशाल के सी की हिन्दी एवं नेपाली में कई रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं- ‘सम्झना’ (नेपाली-2013), ‘आमा’ (नेपाली-2014), ‘शहीद’ (हिन्दी-2015), ‘पोस्टर’ (हिन्दी-2017), ‘चटयाङ्ग’ (नेपाली-2019), तथा cc नेपाली भाषा में है जो हाल (2021) में प्रकाशित हुई है।
संबन्धित पुस्तक ‘विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट’ अर्थात् ‘विक्रमवीर थापा मेरे आँखों के झरोकों से’ पूर्वोत्तर भारत के वरिष्ठ साहित्यकार ‘विक्रमवीर थापा’ के आलेखों, अनुभूतियों, साक्षात्कार तथा उनके कृतियों को आधार बनाकर नेपाली भाषा में लिखी गई है। जो एक शोधपरक पुस्तक है। यह पुस्तक वर्तमान में नेपाली साहित्य जगत में चर्चा का विषय बनी हुई है। पुस्तक के चर्चा में होने का विशेष कारण स्वयं विक्रमवीर थापा हैं जो अपनी कृति ‘बीसौं शताब्दीको मोनालिसा’(नेपाली) सन् 1999 में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत है। हाल विशाल के सी द्वारा लिखित पुस्तक न केवल भारत में बल्कि यूके एवं पड़ोसी देश नेपाल में भी चर्चित है। जिसके लिए विशाल के सी को रेडियो तथा अन्य संघ संस्थानों द्वारा साक्षात्कार के लिए भी निमंत्रण दिये गए।
पूर्वोत्तर भारत के वरिष्ठ साहित्यकार ‘विक्रमवीर थापा’ अति मिलनसार तथा ज्ञान के धनी हैं। किन्तु शिक्षा के संबंध में वे स्वयं स्वीकारते हैं कि उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त नहींं की बावजूद इसके उन्होंने नेपाली साहित्य जगत को ‘सात’ अनमोल कृतियाँ प्रदान की जिनमें से एक कृति ‘टिस्टादेखि सतलजसम्म’ उत्तर बंग विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है। कम शिक्षित होने के बावजूद साहित्य में उनकी पकड़ गहरी होने के विषय में वे रामकृष्ण परमहंस का उदाहरण देते हुए कहते हैं- “सर्वप्रथम अध्ययनशील होना आवश्यक है। पढ़ने के लिए विद्यालयी शिक्षा की आवश्यकता नहींं। इच्छा शक्ति प्रबल हो तो घर में ही शिक्षा प्राप्त किया जा सकता है। नौकरी के लिए डिग्री की आवश्यकता है। साहित्य के लिए नहींं। साहित्य के लिए अध्ययनशीलता एवं अनुभूति चाहिए। किसी भी कार्य में मन लगाकर कार्य करने से अनुभव बढ़ता है जिस कारण आप अपने कार्य से सभी का विश्वास जीत सकते हैं। उदाहरण परमहंस रामकृष्ण को ले सकते हैं।”1 अपनी शिक्षा से संबन्धित विक्रमवीर थापा के उत्तर प्रति उत्तर जो भी रहे हो किन्तु बचपन से लेकर बुढ़ापे तक संघर्ष ने उनका साथ कभी नहींं छोड़ा।
‘विक्रमवीर थापा’ को न पहचानने वालों को यह जानकार आश्चर्य होगा कि वे भारत के भूतपूर्व सैनिक रह चुके हैं। एक सैनिक का सफल रचनाकार होना आश्चर्य में डालता है किन्तु सत्य तो यही है कि वे जितनी वीरता से सन् 1972 में बांग्लादेश के युद्ध में राइफल लेकर देश की सेवा में डटे रहें उतनी ही सिद्दत से कलम भी चलाया और सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कर नेपाली साहित्य जगत के पन्नों में ऐतिहासिक घटना को मूर्त रूप दिया। ‘विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट’ के लेखक विशाल के सी स्वयं एक सिपाही होने के नाते कहते हैं कि फौज में होने तक सैनिक को याद रखा जाता है अवकाश प्राप्ति के पश्चात् वे नाम भुला दिये जाते हैं। किन्तु विक्रमवीर थापा का नाम आज भी फौज में उतने ही सम्मान पूर्वक लिया जाता है कारण उनकी रचना ‘बीसौं शताब्दीको मोनालिसा’ है। मेजर जनरल इयान कारडोजो द्वारा लिखित पुस्तक “The fifth Gorkha Rifle frontier force” के पृष्ट संख्या-65 में लिखा है – June 2000 however brought in happy tidings. Rifleman Bikram Bir Thapa (Retired) was honoured with ‘Sahitya Akademi Award’ for the Year 1999 for his Book ‘The Monalisa Of the 20th Century”2 अवकाश प्राप्ति के पश्चात् भी फौज के मेजर जनरल द्वारा लिखित पुस्तक में स्वयं को सुसज्जित होते पाना किसी जंग जीतने से कम नहींं, भले ही वह साहित्यिक जंग क्यों न हो? (नोट- इस पुस्तक के लेखक Major General Ian Cardozo वही व्यक्ति हैं जिन्होंने Gorkha Regiment का नेतृत्व किया था एवं वर्तमान में उन्हें केंद्र में रखकर हिन्दी फिल्म Gorkha फिल्माया जा रहा है जिसके अभिनेता अक्षय कुमार हैं।)
विक्रमवीर थापा वरिष्ठ साहित्यकार के साथ ही साथ अच्छे चित्रकार भी हैं। अभी तक वे लगभग तीन सौ चित्र अंकित कर चुके हैं। वे अपने चित्रकला में स्थूल में भी सुंदरता की खोज करते हैं, चित्रकारी के संबंध में उनका मानना है कि यह कला उन्हें जन्मजात प्राप्त हुई। इसीलिए वे कला के संबंध में स्वयं को चित्रकार के रूप में प्रथम तथा साहित्य के क्षेत्र में द्वितीय स्थान पर रखते हैं। किन्तु उनका नाम साहित्यकार के रूप में अधिक चर्चित हुआ। किन्तु दुःख की बात है कि साहित्य के क्षेत्र में उनका नाम जीतना चर्चा में हैं, अपने समाज में वे उतना ही गुमनाम है।—कारण, वे स्वयं स्वीकारते हैं उनका स्वयं का निर्धन होना। स्वाभाविक है कि साहित्य रचने का उद्देश्य केवल पैसा कमाना नहींं। साहित्य का उद्देश्य अपने समाज, भाषा अपने लोगों को सशक्त बनाना है किन्तु विक्रमवीर थापा यहीं हार जाते हैं और कहते हैं- “मेरा सुझाव है कि यदि आपके पास पैसे नहींं है तो कुछ नहींं है क्योंकि मैंने स्वयं इसे भोगा है। यदि आज मेरे पास पैसे होते तो मेरे कमरे में लोगों का तांता लगा होता। मेरे पास पैसे नहींं है इसीलिए कोई मेरी खबर भी नहींं लेता।”3 एक साहित्यकार होने के नाते विक्रमवीर थापा हमेशा अपने समाज को उन ऊँचाइयों में देखना चाहते हैं जहाँ हर व्यक्ति पहुँचने के सपने देखता है, किन्तु कई बार वे ठीक इसके विपरीत देखते हैं। जिस कारण उनके मन में हमेशा टीस रहती—है और कभी-कभार यह टीस सामाजिक संजाल में आलेख के रूप में फुट पड़ता है। इनके इसी शिकायत के कारण कई लोग, संघ-सभाएँ स्वयं को इनसे दूर रखते हैं। पुस्तक से ही संदर्भ देख लीजिए- “लेकिन आजकल समय के चक्र के साथ वर्तमान साहित्यकार अपने साहित्यिक पन्ने से विक्रमवीर थापा का नाम मिटाते जा रहे हैं, जिसका जीवन्त उदाहरण है ‘संयुक्त अधिवेशन’ जैसे सभा का विक्रमवीर थापा को आमंत्रण न करना।”4 पूर्वोत्तर भारत में रहकर अपने जाति, भाषा, साहित्य तथा समाज प्रति सजग होना, समाज को चेतनाशील होने का संदेश देना एक साहित्यकार का धर्म होता है। किन्तु समाज के कुछ पक्षपाती व्यक्ति ऐसे सजग साहित्यकार को बार-बार चोट देकर समाज से काटने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे अवहेलना तथा चोट के पंक्ति में केवल विक्रमवीर थापा ही नहींं अन्य नाम भी जुड़े हैं।
कहा जाता हैं कि कला का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति न केवल वर्तमान बल्कि भविष्यद्रष्टा भी होता है और अपने कला के माध्यम से मनुष्य-मनुष्य को जोड़े रखता है। अतः विक्रमवीर थापा द्वारा चित्रित चित्र ‘सन् 1999 को कार्गिल युद्ध’ के संदर्भ में वे स्वयं कहते हैं- “यह चित्र हिन्दू-मुस्लिम या अन्य जाति का व्यक्तिगत परिचय नहींं अपितु भारतभूमि में निवास करने वाली जनता की एकता का प्रतीक है। शत्रु द्वारा जितना भी आक्रमण किया जाए हम सभी एक ही रहेंगे। हमें कोई अलग नहींं कर सकता क्योंकि हम भारतीय है और संसार का कोई शत्रु हमें अलग नहींं कर सकता बल्कि संकट आने पर उसे कैसे दूर करना है हमें आता है।”5 साहित्यकार अपने समाज के सुधार-जागरूकता के लिए जितनी कठोरता तथा व्यंग्य से अपनी कलम उठाता है उसका हृदय उससे अधिक कोमलता, अपनेपन से भरा रहता है। वह साहित्य भी रचता है तो केवल अपने समाज अपने लोगों के हित के लिए।
साहित्य समाज का दर्पण होता है जहाँ समाज में हो रहे घटनाओं को विभिन्न विधाओं के माध्यम से उजागर किया जाता है। समाज के बिना मनुष्य का निर्माण असंभव है। समाज की व्यवस्था परिवार से उसमें रहने वाले लोगों से बनता है तथा उस परिवार में एक पुरुष की जितनी अहमियत होती है स्त्री की भी अहम भूमिका होती है। प्राचीन काल से हमारे समाज में स्त्री को देवी और कई रूपों से पूजा जाता है। सम्मान दिया जाता है। इसे प्रसाद की इस पंक्ति से जानते हुए आगे बढ़ते हैं-
‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नग पगतल में
पीयूष स्रोत से बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में’
प्रस्तुत पंक्ति यह स्पष्ट करती हैकि नारी का सम्मान साहित्य में भी उतना ही है जितना शास्त्रों में। विक्रमवीर थापा के जीवन में दिया छेत्री, तुलसी छेत्री, कमला बहिनी आदि अनेक स्त्रियों का आगमन बहन-बेटी के रूप में हुआ। किन्तु जीवन संगिनी के रूप में जिसे उन्होंने चाहा वह कभी उसे पा न सके और वह ईश्वर को प्यारी हो गयी।
संबन्धित पुस्तक में विक्रमवीर थापा अपनी मुँह—बोली बहन तुलसी छेत्री को याद करते हुए बहुत सुंदर घटना का उल्लेख करते हैं जिसके कारण उन्हें ‘माटो बोलदो हो’ उपन्यास लिखने की प्रेरणा मिली – “बहन, मांग में सिंदूर भरने के पश्चात् बेटी पराई धन हो जाती है, इसीलिए जब बेटी का विवाह हो जाता है फिर मायके के मिट्टी से उसका कोई संबंध नहींं रह जाता। किन्तु अभी तक तुम्हारे मांग में सिंदूर भरा नहींं गया है इसीलिए तुम अभी मायके के मिट्टी से पराई नहींं हुई हो। तुम्हारे जन्मभूमि, तुम्हारे लालन-पालन हुए स्थान से तुम्हारा नाता टूटा नहींं है, न जीवनभर टूटेगा। जीवनभर अपने जन्मभूमि से तुम्हारा नाता बना रहे इसीलिए तुम्हारे लिए में तुम्हारे जन्मभूमि की मिट्टी लेकर आया हूँ। तुम्हारा गरीब भाई तुम्हें हीरे-मोती, या सोफ़ासेट नहींं दे सकता, दे सकता है तो- गोड़धुवा के रूप में तुम्हारी जन्मभूमि की मिट्टी।”6 (गोड़धुआ अर्थात् विवाह से पूर्व लड़की के मायके वाले उसके पैरों को जल से धोते हैं।) इस घटना से यह जान पड़ता है कि विक्रमवीर थापा स्त्री जाति के प्रति सहृदय हैं। वे नारी अस्मिता के प्रति सम्मान देते हुये कहते हैं “नारी अस्मिता के प्रति में क्यों सचेत हूँ या विश्वास करता हूँ इसका कारण मेरी माँ है। मेरे जन्म के पश्चात् माँ के दुग्धपान से मैं पला-बढ़ा। इसी कारण में सर्वप्रथम एक स्त्री में अपनी माँ का स्वरूप देखता हूँ तत् पश्चात् और। इसी कारण मैं नारी-अस्मिता के प्रति सचेत हूँ।”7 शास्त्रों एवं साहित्य में भी अंकित है कि जहाँ स्त्री का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं। इसे ऐसे ले कि वर्तमान में जिस समाज में स्त्री का सम्मान होता है वह समाज सम्पन्न, शिक्षित तथा उनमें सद्भाव बना रहता है।
निष्कर्षतः पुस्तक का अध्ययन कर यह स्पष्ट होता है कि विशाल के सी ने इस पुस्तक में विक्रमवीर थापा के विचारों को, जीवन में घटित उनके तमाम अनुभूतियों को, अपने समाज के प्रति उनके जागरूकता को, उनके बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ उनके कला को केंद्र में रखा है। जिसे कलाहिन व्यक्ति या यों कहे की एक भीड़ उनके कला को समझ नहींं पाता और तमाम तरह के आक्षेप लगाता जाता है किन्तु उसी भीड़ में विशाल के सी जैसे साहित्यकार और अन्य व्यक्ति भी हैं जो उन्हें समझते हैं उनके साहित्य, कला, ज्ञान की सराहना भी करते हैं जिसका सबसे बड़ा उदाहरण यह पुस्तक है। अंततः साहित्य लिखना सभी के बस का नहींं उसके लिए प्रतिभा का होना आवश्यक है और लेखन का बुलंद होना आवश्यक है। लेखक जो भी लिखे उससे समाज का हित हो न की केवल कागजों की ढ़ेर। अन्यथा अर्थ का अनर्थ होते समय नहींं लगता।
संदर्भ सूची
विशाल के सी, विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट, (तेजपुर: भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, 2021),107
विशाल के सी, विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट, (तेजपुर: भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, 2021),37
विशाल के सी, विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट, (तेजपुर: भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, 2021),34
विशाल के सी, विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट, (तेजपुर: भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, 2021),19
विशाल के सी, विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट, (तेजपुर: भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, 2021),31
विशाल के सी, विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट, (तेजपुर: भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, 2021),64
विशाल के सी, विक्रमवीर थापा मेरा आँखीझ्यालबाट, (तेजपुर: भारतीय साहित्य प्रतिष्ठान, 2021),103
नीतू थापा: एम.फिल (महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा), पीएचडी शोधार्थी-पूर्वोतर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग

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