‘ओ दादी’, रूआंसी होती हुई मीनल बोली- ‘मुझे भूख लगी है, माँ आप कहाँ हो?’ जोर जोर से आवाजें लगाती हुई मीनल माँ को ढूँढने लगी।
पांचवी कक्षा में पढ़ने वाली मीनल की सबसे अच्छी दोस्त थी राजकुमारी दोनों साथ मिलकर मीनल की हवेली की तीसरी मंजिल से भी ऊपर की ओर छत पर जाने वाली सीढ़ियों पर छुप कर बैठ जाते, पकी हुई इमली, अमरूद, लाल मिर्च भरी हुई बड़े सुख से खाते, उन दोनों की जिंदगी का सबसे बड़ा खुशहाली का वक्त वही होता था। दोपहर में जब सब सो जाते थे, राजकुमारी के आँगन में अमरूद का पेड़ था बिल्कुल कच्चे नारियल जैसा स्वाद था, वाह कितना अच्छा था सब कुछ औरअब 15 दिन बीत गए। सब्र की हद हो गई। एक दिन सुबह-सुबह ही सहेली के घर जा पहुंची वो। आँगन में सिलबट्टी पर पड़ी गीली हल्दी आज अपनी रंगत से अलग ही दीखरही थी। ‘राजकुमारी कहाँ हो तुम? अरे आंटी जी ! बहुत दिनों से वो स्कूल क्यों नहीं आ रही है? बहुत ज्यादा पढ़ाई हो रही है’ उसकी मम्मी अपनी आँखों से आँसू पूछती हुई दूसरे कमरे में चली गई। भैया ने बोला ‘चिंता मत करो हम उसे खबर कर देंगे।’ भोली मीनल उदास सी अपने घर लौटी, तो माँ ने डाँट लगाई- ‘सुबह-सुबह भला किसी के घर जाते हैं क्या? अब से वहाँ गई, तो समझना।’
रूआाँसी मीनल अपनी गुड़िया की ओढ़नी में अटकी हुई थी। राजकुमारी बोल कर गई थी ‘मैं इस गुड़िया की ओढ़नी सजाऊ ँगी। बस नानी के घर से जल्दी ही लौट कर आऊ ँगी तुम सब सामान जुटा कर रखना।’ कितनी मिन्नतों के बाद दादी ने थोड़ा सा गोटा दे दिया था, देते हुए बोली थीं- ‘यह ठाकुर जी (कृष्ण भगवान) के लिए म ँगाया है, दे रही हूं तुम्हें खराब मत करना।’ छत पर अकेली बैठी मीनल का मन नहीं लग रहा था। उसने सोचा चलो क्यों न दादी से ही किरन, गोटा लगवा लेते हैं, और सारा सामान ले गुड़िया को खूब सारा प्यार कर उसे दुपट्टे में लपेट वह सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी कि बाबा की आवाज सुनाई दी, ‘हमारी मीनू बिटिया उदास हो जाएगी अभी मत कुछ बताना।’
सन्नाटा था बरामदे में, दादी ने उसे यह कहकर वापस कर दिया कि ‘मैं थक गई हूं, बाद में कर लेंगे।’ बुआ को भी जाने क्या हुआ था बोली- ‘आँखों में दर्द है और मम्मी, अभी उनके आराम करने का वक्त है।’ उदासी, दुख और गुस्सा सब मीनल के सिर पर नाचने लगे थे तभी बाबा ने प्यार से सिर सहलाते हुए कहा- ‘कल मिथिला आएगी न काम पर बस सबसे पहले तुम्हारे गुड़िया की ओढ़नी, ठीक है।’ मीनल को मन माँगी मुराद मिल गई थी अपने सपनों को दुपट्टे में समेटे नाचते-कूदते यह बात अपनी छोटी बहन को बताने चली गई।
अगले दिन स्कूल में हिंदी का पीरियड था और कक्षा में काव्य पाठ का आयोजन, जो कि हिंदी की अध्यापिका हर महीने करवाती थी। कोई भी कविता देखकर पढ़ने का मन हो या याद करके बोलने का मन हो, खूब अच्छे ढंग से अभिनय के साथ जो पढ़ता उसे टीचर अपनी तरफ से इनाम देती। मीनल से भला कोई कहाँ जीत पाता था पर आज सदा मुस्कुराने वाली मीनल पनियाली आँखें लिए बैठी थी। सारी लड़कियाँ एक के बाद एक कविता पढ़ रही थीं लेकिन टीचर की आँखें तो अपनी प्यारी मीनल अभिनेत्री को ढूँढ रही थी तभी उनकी नजर उस पर पड़ी, ‘क्यों उदास क्यों बैठी हो अभिनेत्री?’(टीचर हमेशा इसी नाम से उसे बुलाया करती थीं)
‘टीचर वो राजकुमारी आज-कल स्कूल नहीं आती, घर पर भी नहीं है मम्मी बोलती हैं वह नानी के घर चली गई है।’ पल भर में ही टीचर को सारी वस्तु स्थिति समझ में आ गई थी। उनकी भी आँखें भर भरा उठी, बोली- ‘बेटी जो लोग भगवान के घर चले जाते हैं वह वापस कभी नहीं आते तुम्हें किसी ने बताया नहीं, उसको ब्लड कैंसर हो गया था। और बेटा इस रोग का इलाज अभी तक नहीं निकला है। उसके लिए प्रार्थना सभा तो रखी थी स्कूल में, शायद तुम उस दिन नहीं आई थी।’ मीनल को अपनी गुड़िया, ओढ़नी, गोटा-किरन, अपनी सहेली सब धुँधले होते नजर आ रहे थे।

तूलिका श्री, बड़ौदा : बड़ौदा से प्रकाशित हिंदी त्रैमासिक पत्रिका नारी अस्मिता में समीक्षक के रूप में कार्यरत। अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनंदन समिति मथुरा द्वारा राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कवि का सम्मान प्राप्त। संप्रति- ऑक्जिलियम कन्वेंट हाई स्कूल, बड़ौदा में हिंदी संस्कृत की अध्यापिका के रूप में कार्यरत।