दोहों में गीतों के अक्षय अंकुर : ज्यों कुहरे में धूप

पुस्तक: ज्यों कुहरे में धूप
लेखन: श्री शिव मोहन सिंह
प्रकाशन: विनसर पब्लिशिंग कं देहरादून

“देखन में छोटा लगे, घाव करे गंभीर” वाली सटीक पंक्ति कविवर बिहारी की सतसई के संदर्भ में कही गई थी। सतसई वह दोहा-संग्रह है जिसे विश्व स्तरीय ख्याति मिली है। संत कवि कबीरदास, आचार्य तुलसीदास, नीति निपुण रहीम जी, जायसी जी आदि कवि दोहों की बदौलत अब तक जनमानस में जीवित हैं।  इससे दोहा की महत्ता और जन स्वीकार्यता सिद्ध होती है। दोहा चार चरणों में कुल 48 मात्राओं का व्यवस्थित छंद मात्र नहीं है अपितु कथ्य और प्रभाव की दृष्टि से युगबोध का सबसे लघु प्रतिनिधि दस्तावेज भी है। इसलिए दोहा का कलापक्ष सबसे आसान है तो भावपक्ष का प्रतिमान सबसे ऊपर। अतएव दोहाकार को स्थापित होने के लिए बहुत बड़ी सतत साधना की आवश्यकता होती है। ससम्मान सेवानिवृत्त अभियंता श्री शिव मोहन सिंह जी देहरादून की धवल धरती से सरस गीत, प्रेरक मुक्तक के बाद अब दोहाकार के रूप में “ज्यों  कुहरे में धूप” के साथ उपस्थित हैं।

15 अध्यायों में विभक्त किंतु अखंड 108 पृष्ठीय तकरीबन 600 दोहों से सुसज्जित है ज्यों कुहरे में धूप। यद्यपि दोहे मुक्त होते हैं तथापि कुछ लेखक विविध विषयों या उपविषयों में बाँधकर श्रृंखलाबद्ध सृजन भी करते हैं। इस पुस्तक के लेखक के मन में जब भी विचारों का अर्णव उदित हुआ, मन वांछित विधा में लिपिबद्ध कर लिए। जब पुस्तक प्रकाशन का विचार आया, विषयों-उपविषयों में संग्रहित कर लिए। इस सम्बंध में लेखक ने “अपनी बात” में बताया भी है कि-

“भाव-भाव आते रहे, पथ में जैसे मीत।

शब्द-शब्द बनते रहे, कुछ दोहे कुछ गीत।।”

इस संग्रह में शतकाधिक दोहे ऐसे हैं जिन्हें लोकोत्तियों का नव कलेवर कहा जा सकता है। द्विरुक्ति का अधिकाधिक प्रयोग हुआ है जो दोष होते हुए भी श्रृंगार वर्द्धक है। एक या दो चरण का कई दोहों में ज्यों का त्यों जुड़ जाना खलता है किंतु लेखक की पूर्व स्वीकारोक्ति कि दोहों का सृजन काल व्यापक रहा है, दोष क्षीण हो जाता है। पुस्तक को त्रुटिरहित रखने में लेखक को बहुतायत सफलता मिली है। प्रायः दोहा में प्रथम व द्वितीय चरणों में किसी तथ्य को कहा जाता है और तृतीय व चतुर्थ चरण में उदाहरण द्वारा पुष्टि की जाती है। यही कारण है कि मात्र 48 मात्राओं में एक विषय का पूर्ण निष्पादन हो जाता है। दृष्टांत या उदाहरण के संदर्भ में सर्वाधिक प्रचलित दोहे ही हैं। इस मानक पर कुछ दोहे कुछ कमजोर प्रतीत होते हैं किंतु वे एक स्वतंत्र काव्य बनकर स्थापित हो जाते हैं।

 दोहों के परिधान में गीत सँजोना इस दोहाकार की प्रमुखं विशेषता है। इसका कारण इनके पूर्व रचित गीत हैं जो किसी भी काव्यिक साँचे में स्वयं को ढाल लेते हैं। लेखक महोदय वर्तमान की दशा और भविष्य की दिशा के प्रति भी पूर्णतः सजग हैं। विरासत, परिवर्तन और प्रगति के पक्षधर हैं। कुछ दोहे द्रष्टव्य हैं जो प्रबुद्ध पाठक को कुहरे में धूप की अनुभूति कराकर ही दम लेते हैं।

“आज अधूरे ज्ञान की, सत्ता हुई समर्थ।

बनते पावन शब्द के, नित्य अपावन अर्थ।।

पक्की होती क्यारियाँ, कच्चा घर बुनियाद।

खेती होती सड़क पर, धरना संग फसाद।।

नफ़रत के बाजार में, घुला प्रीति का रंग।

मुदित हुआ मन झूमता, उर में भरी उमंग।।”

समीक्षक

डॉ अवधेश कुमार अवध: वाराणसी (चन्दौली), उत्तर प्रदेश के मूल निवासी डॉ अवध मेघालय में सिविल अभियांत्रिकी मेंं सेवारत हैं। बहुआयामी लेखन के साथ समीक्षा में भी रुचि रखते हैं।  देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। इनके द्वारा संपादित “इनसे हैं हम” उल्लेखनीय पुस्तक है।

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक- मिथक और लोककथा गारो पहाड़ियों से

लेखन- श्रीमती सी. टी. संगमा

अनुवाद- डॉ अनीता पंडा

प्रकाशक- सन्मति पब्लीशर्स ऐंड डिट्रीब्यूटर्स, हापुड़ (उ.प्र.)

मेघालय में अवस्थित गारो पहाड़ियाँ और उनसे उपजे मिथक आज भी जुबान पर थिरकते हुए अनायास ही अपनी ओर खींचते हैं। इसको शिद्दत से अनुभूत किया अवकाश प्राप्त राज्य प्रशासनिक अधिकारी, मेघालय सरकार और ख्यातिलब्ध लेखिका श्रीमती सी.टी. संगमा ने। तत्पश्चात शिलॉंग (शिवलिंग) में तीन दशकों से शिक्षण/प्रशिक्षण, शोध और लेखन में अग्रणी रहीं डॉ अनीता पंडा ने श्री मती संगमा द्वारा लिखित “Myriad Colours Of North East – 1,2,3” को आधार बनाकर चिंतन के ताने-बाने से वितान बुना। डॉ अनीता पंडा जी ने राजभाषा हिंदी में न केवल अनुवाद किया बल्कि स्वाध्ययन, अवलोकन एवं जनश्रुतियों द्वारा प्रत्युत्पन्न निष्कर्ष से कथा-विन्यास विकसित किया।

इस पुस्तक में पौराणिक एवं मिथक, शौर्य कथाएँ, लोक कथाएँ, प्रेम कथाएँ तथा रहस्यमयी कथाओं सहित 5 अध्याय निहित हैं। लेखिका ने सदैव अनुवाद की मूल संचेतना को सुरक्षित एवं संरक्षित रखा है। प्रो. दिनेश कुमार चौबे ने अनुवाद के बारे में बहुत स्पष्ट मत रखते हुए कहा है कि अनुवाद का मतलब परकाया में प्रवेश है। दूसरे शब्दों में ‘एकात्म’ हो जाना अनुवाद का आवश्यक गुण एवं आवश्यकता है। अनुवादक लेखिका ने इसके प्रति सजगता का परिचय दिया है। यद्यपि भाषा के रूप में हिंदी व्यवहृत है तथापि स्थानीय जीवन, संस्कृति, गाथा एवं मिथक के साथ तादात्म्य में कमी नहीं आने दी गई, जो अनुभवी लेखिका की कुशल लेखनी की पुष्टि हेतु पर्याप्त है।

मिथक क्या है? जानना महत्वपूर्ण है और आवश्यक भी विशेषतः इस पुस्तक के संदर्भ में। मिथक परम्परागत या अनुश्रुत कथा है जो किसी अतिमानवीय तथाकथित प्राणी या घटना से सम्बंध रखती है। विशेषतः इसका सम्बंध देवताओं, विश्व की उत्पत्ति तथा विश्वासों से है। यह एक ऐसा विश्वास है जो बिना तर्क के स्वीकार किया जाता है। प्रसाद जी की कामायनी के मूल्यांकन से हिंदी साहित्य में मिथक पर विचार का प्रारम्भ माना जाता है। दूसरे शब्दों में लेखन को एक मिथकीय प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया गया है। जैसा कि डॉ नगेन्द्र ने कहा था कि ‘……नये कवि वर्तमान के अतीतत्व और अतीत के वर्तमानता में विश्वास करते हैं’, डॉ अनीता पंडा ने अनुवाद करते समय मिथक की इस विशेषता को पूर्णतः सिद्ध करते हुए संरक्षित किया है।

बंदर, मकड़ा, सियार, जुगनू, हाथी, लंगूर, सूअर, कुत्ता, मुर्गी और मेंढक आदि जीव-जंतुओं और कुछ लड़के/लड़कियों के चरित्रों के माध्यम से सुदक्ष लेखिका/अनुवादिका ने लोककथा को नवजीवन और नूतन कलेवर प्रदान किया है। बंदर की नकलची प्रकृति और फलस्वरूप असफलता की ओर भी बारम्बार इंगित किया गया है। लोककथा किसी मानव-समूह की उस साझी अभियक्ति को कहते हैं जो लोककथाओं, कहावतों, चुटकुलों आदि अनेक रूपों में अभिव्यक्त होता है। इस पुस्तक में पैनी नजर और बेबाकीपन से इसका अनुपालन किया गया है। डॉ अनीता जी ने गारो पहाड़ियों की मूल संज्ञा को हिंदी शब्दार्थ के साथ सजाया है जिससे पाठक बिना भटकाव के सटीक एवं वांछित छवि बना सके। बाल्पक्रम की खूबसूरती, चमत्कार, किंवदंती, मिथकाधारित लोककथा पर लेखनीचलाते हुए अनुवादिका ने देखी और सुनी बातों में फर्क के प्रति पूर्ण सजगता का परिचय दिया है।

यह पुस्तक लेखिका श्रीमती संगमा और अनुवादिका श्रीमती पंडा के सान्द्रित शोध का सकारात्मक परिणाम है। पाठकों के चक्षु – पटल पर गारों पहाड़ियाँ जीवंत हो उठती हैं। संस्कृति, सोच और दिनचर्या सजीव हो जाती हैं। पुस्तक का आकर्षक आवरण और सुरुचिकर विषयवस्तु पाठक-हृदय को संतृप्त करते हैं और अतिरिक्त गहन शोध हेतु प्रेरित भी।

पुस्तक- मिथक और लोककथा गारो पहाड़ियों से

लेखन- श्रीमती सी. टी. संगमा

अनुवाद- डॉ अनीता पंडा

प्रकाशक- सन्मति पब्लीशर्स ऐंड डिट्रीब्यूटर्स, हापुड़ (उ.प्र.)

प्रकाशन वर्ष- 2020

पृष्ठ-114

मूल्य- रुपये 135/-

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