सविता दास सवि
मेरी आंखें जब करती हैं
तुम्हारी आँखों तक यात्रा
समय का सूक्ष्म कण लेकर
यूँ तो पूरी हो जाती है यात्रा
फिर भी
एक दृष्टि में मानों
मौन के सारे दस्तावेज़ लिए
धरती-आकाश में व्याप्त
शून्य के बीच
हवा की नमीं लिए
सूरज की ऊष्मता
और पृथ्वी के इतिहास में
जन्मे पहले प्रेमी की
सारी कामनाएं दृष्टि
में लेकर तुम्हारी
पलकों के चौखट पर
पहुंच जाती है,
चकित हो जाती हूँ
कितनी सम्पन्न हैं
ये आँखें तुम्हारी
फिर भी मेरी आत्मा के
आधे हिस्से से ख़ुद को
सम्पूर्ण बनाने के लिए
बने रहते हो हमेशा
एक अबोध याचक।