तूलिका श्री
पुस्तक- ‘ख्वाहिशों का आसमा’
लेखन – कंचन शर्मा
प्रकाशक – नवनिर्माण साहित्य, गुवाहाटी
प्रकाशन वर्ष – जुलाई 2021
मूल्य -251

हरि अनंत हरि कथा अनंता
कह़ही सुनही बहु सिंधी सब संता
ईश्वर और उनकी आस्था से जुड़ी कथा कहानियों का फैलावा अनंत है। अनेक प्रकार से समाज में कही सुनी जाती हैं माया जाल है, यह सारी दुनिया। इंसान हैं , क्रियाएं हैं, प्रतिक्रियाएं हैं, सब कुछ गतिमान है प्रकृति हर पल बदलती जा रही है हम हर पल नए होते जा रहे हैं। कुछ दैवीय गुणों से भरी हुई सजग आंखें हैं जो तेजी से इन्हें पहचान लेती हैं। सतर्क होकर आगे का रास्ता तय कर रही हैं और कुछ, को यद् भविष्यति -जो होगा देखा जाएगा – इसी से फुर्सत नहीं है! गतिमान जीवन में कुछ प्रतिशत ही लक्ष्य हासिल हो पाते हैं। जहां एक-एक करके असफलता है फिर भी जुझारूपन बना रहता है तो वहां झरने को अपना रुख बदलना ही होता है। आज के दिन में महिलाएं अपने स्नेह , कर्तव्य , संघर्ष , चुनौती ताप एवं अनंत संवेदना सहित फिर से उपस्थित हैं चाहे अक्षरों द्वारा पदों पर प्रतिष्ठित होकर सेवा द्वारा या सहयोगी बनकर इन्हीं तथ्यों पर रोशनी डालती लघुकथा संग्रह ख्वाहिशों का आसमा उपस्थित हुई है कई कथाओं की यात्रा करते हुए घर का चिराग में मन रुक गया माँ फिर एक काम कर मुझे मालकिन के पास गिरवी रख दे और जो पैसे मिलेंगे उससे दिवाली के दिन बहुत सारे दिए जलाना (पृष्ठ 112) मन की खुशियों के लिए हम सब भटकते रहते हैं और जो मन में विद्यमान है उसे ही बाहर आने से रोक देते हैं ! ! ! दरवाजे बंद करने से भला धूप की इच्छा करने वाले को कैसे समझाया जाए परिस्थितियों हेतु ग्रहण शीलता अत्यावश्यक है सत्संग कहानी संदेश देती है कि वर्तमान में जीना बहुत जरूरी है बहू के भाई की सगाई है सो मैंने कहा कि’ मैं बिटिया को संभालती हूं( पृष्ठ 83) लेखिका कंचन जी ने जीवन को बहुत ही सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है जिंदगी हमें अपने आप स्वयं को संभालना स्वयं ही संभालना होता है किस राह पर चलकर कैसा व्यक्तित्व धारण कर बढ़ना है इसकी जिम्मेदारी हमारी होती है सहन तो करना है लेकिन किस हद तक यह वक्त ही तय करता है
तो गुरु जी अब मुझे एक शिष्य का धर्म निभाने दें , कृपया मेरी गुरु दक्षिणा स्वीकार कीजिए। (गुरु दक्षिणा, पृष्ठ 62 )
परिवार पहले संस्था है जहां हमारे व्यक्तित्व को हर पल आयाम मिलता है। बोली व्यवहार सीखते हैं हम, चुनौतियों का सामना करने की ताकत प्राप्त करते हैं।
हां ठीक कहा आपने हमारा बच्चा बहुत ही स्पेशल है आपके बच्चे इसकी बातें नहीं समझेंगे। (पूर्ण विराम, पृष्ठ 44)
जाति पाती की परेशानियां हमेशा से ही हमें तंग करती रही हैं ऊंची जाति -नीची जाति, संत रविदास के भजन गाकर सर्वश्रेष्ठ गायक का पदक जीतेंगे, माता शबरी के बेर का जिक्र करेंगे राम भक्तों की चर्चा करेंगे! ! ! जाने किस जाति के मजदूर घर बना कर गए जाते भी पूछ लेते , अरे रे रे मूर्तिकार की जाति रह गई महालक्ष्मी की या राम जी की आराधना कृष्ण की, चंदन , इत्र , गुलाल ज्यादा कर अलग समाज की जातियां बनाती है यही तो कहना चाहती हैं कंचन जी (रक्तदान पृष्ठ 23) के माध्यम से
जा गिरधारी, ‘बुला ला ! ! ! उस छोरे को , कहना खून की कोई जात नहीं होती है। ‘आगे की बहुत सारी लघुकथाएं जोकि हर रोज हर पल हमें कुछ न कुछ सिखा रहीं हैं। तार्किक एवं विवेचनात्मक दृष्टि से लेखिका ने अनेकों घटनाओं को आत्मसात किया है। कहानी , एजुकेटेड इंडियन , उम्मीद, मंजिल, कर्तव्य सहज ही प्रशंसनीय हैं। कंचन जी की पुस्तक का हर एक शब्द ग्रहणीय है। अंतिम कहानी जो पुस्तक का नाम भी है , ’ख्वाहिशों का आसमान’ अपनी पूर्ण गरिमा का परिचय देता है ! बहुत कम ही होता है कि एक स्त्री दूसरे को सहारा देती है। यहां सुंदरी ने पंखुड़ी को सहारा दिया और वह दलदल में से निकलने की हिम्मत कर पाई।
डॉक्टर अन्नपूर्णा जी ने बहुत ही आवश्यक जानकारी भेजा है लघु कथा के नियमों के बारे में। उनका बहुत धन्यवाद है। कंचन जी असली हकदार( पृष्ठ 103)जैसी कथाएं लिखकर निद्रा में से रिश्तों को जगाती हैं। उन्हें शुभकामनाएं
तूलिका श्री : बड़ौदा से प्रकाशित हिंदी त्रैमासिक पत्रिका नारी अस्मिता में समीक्षक के रूप में कार्यरत। अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनंदन समिति मथुरा द्वारा राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कवि का सम्मान प्राप्त। संप्रति- ऑक्जिलियम कन्वेंट हाई स्कूल, बड़ौदा में हिंदी संस्कृत की अध्यापिका के रूप में कार्यरत।

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