जब-जब मनवा हो दुखी,
नैन बहे जलधार।
पलक भीग कर सो गई,
कुंठित पुतली खार॥

दोनो नैना सोचते,
क्या है अपना दोष?
क्यूँ हम दोनों रो रहे,
हम बिल्कुल निर्दोष॥

सुन उनके आक्रोश को,
द्रवित नासिका द्वार।
गंगा-जमुना बह रही,
हम भी हैं लाचार॥

दिल था जो आहत हुआ,
सहन नासिका नैन।
किस विधि करूँ निहाल[1] मैं,
सोचूँ मैं दिन रैन॥

किया कर्ण से मशविरा,
नहीं सूझती राह।
कर देना तुम अनसुनी,
देना सबको चाह॥

जिह्वा पर कटुता कभी,
कभी स्नेह उद्गार।
जो मधु भाषी तुम बनो,
हो निहाल संसार॥

नैना रोएँगे नहीं,
नाक रहे खुशहाल।
सुने कर्ण संगीतियाँ,
मन सौंदर्य निहाल

मधु खरे वर्जिनिया में लॉजिस्टिक विशेशज्ञ के रूप में कार्यरत थी। भारत के लखनउ के पूर्वनिवासी मधु जी की  काव्य सुमन, 2022, My Memoirs,, 2022, प्रियंवद (काव्य संग्रह), 2022, जैसी एकल पुस्तक प्रकाशित हुई है। कई काव्य गोष्ठी के सदाशय होने का साथ-साथ इन्हें काव्य पाठ और संचालन में भी रुचि है।


[1] प्रफुल्ल, प्रसन्न