“अरे रवि जल्दी उठो और ये लो बाहर गेट पर गौमाता रम्भा रही हैं, दे दो उन्हें,” कंप्यूटर पर गेम खेलते हुए अपने बेटे को रोटियाँ पकड़ाते हुए महिमा बोली।
“अनु से कह दो, वो दे आएगी, मेरी गेम का टाइम आऊट हो जायेगा।” कंप्यूटर पर नजर गड़ाए रवि बोला।
“अनु बेटा, जाओ तुम ही दे आओ रोटियाँ,” प्यार से पुचकारते हुए महिमा बोली।
“नहीं मैं नहीं जाऊंगी, भाई गेम ही तो खेल रहा है, मैं तो होमवर्क कर रही हूँ,” मुंह बनाते हुए बेटी ने कहा।
“ये क्या बदतमीजी है, बाहर इतनी धूप में खड़ी गौमाता कब से रम्भा रही है और तुम दोनों बहाने बना रहे हो। जल्दी उठो,ये लो।” गुस्से में तमतमाती महिमा चिल्लाई।
“क्या हुआ भाई! क्या दे रही हो बच्चों को?” कमरे में घुसते अमित ने पूछा।
“संस्कार!” कहकर मुस्कुरा दी महिमा।
नीता शर्मा: सफल गृहिणी और लेखिका होने के साथ-साथ आकाशवाणी के कार्यक्रम और नियमित उद्घोषणाएँ भी करती हैं