मैं जब भी सुबह की सैर के लिये निकलती तो रास्ते में सड़क की ढलान पर स्थित हवेलीनुमा घर पर मेरी नज़र अनायास टिक जाती मानो बाहर की वीरानगी अन्दर की कुछ कहानी कहना चाहती हो। एक दिन जब मैं वहाँ से सुबह गुज़र रही थी तो एक दर्दनाक चीख सुन मेरे पैर वहीं ठिठक गये। आवाज़ घर के अन्दर से ही आई थी। ढलान से ऊपर आती एक औरत मुझे देख रुक गई और बोली, “मैडम, शायद आपने भी वही चीख सुनी है।” फिर कुछ रुक कर बोली “यहाँ तो आए दिन कुछ न कुछ होता रहता है। पता नहीं ये लोग बहू के साथ ऐसा बर्ताव क्यों करते हैं। खैर, हम तो ठहरे गरीब आदमी ऐसे झंझटों में खुद को डालकर मुसीबत क्यों लें।” यह कहकर मेरी प्रतिक्रिया देखे बिना मुड़ गई । पता नही क्यों उसकी बात सुनकर मन कसैला हो गया और मैं बिना गये वापस घर की और लौट आई।
उसी शाम मुझे कुछ जरूरी काम के लिए बाजार जाना पड़ा। मैनें उसी घर की तरफ से रूख किया जबकि जाने का दूसरा रास्ता भी था। जैसे ही उस घर के नजदीक पहुँची वहाँ से कुछ लड़ाई- झगड़े की आवाज़ सुनी। सामने जो दो चार छोटे-छोटे मकान नज़र आ रहे थे वहाँ ठण्ड में लोग अपने अपने घरों में दुबके पड़े थे। सड़क पर भी इक्का दुक्का ही आदमी नजर आ रहे थे। मैं भी भारी मन से आगे की ओर चल पड़ी।
नित्य की भान्ति मैं दूसरे दिन सुबह की सैर के लिये निकल पड़ी। उस हवेलीनुमा घर के जब नजदीक पहुंची तब मन बहुत घबराया सा था। देखा बाहर कुछ लोग जमा थे। पूछने पर पता चला कि कल रात घर की बहु चल बसी है। “क्या हुआ था बहू को ?” मैं पूछे बिना न रह सकी। उसी व्यक्ति ने जवाब दिया “ ज्यादा तो मुझे भी पता नही। घर के लोगों का कहना है कि काफी दिनों से बीमार चल रही थी।” न तो मैं घर के लोगों से परिचित थी और न ही बहू को कभी देखा था फिर भी अन्दर से एक आवाज़ आ रही थी कि बहूत से घरों के न जाने और कितने ऐसे अनकहे राज़ होंगे जो मनुष्य की मौत के साथ ही दफन कर दिए जाते हैं। न ही कोई केस और न ही कोई पैरवी बस अनकही दास्तान बन कर रह जाते हैं।
जैसे ही मैं वापिस अपने घर की तरफ मुड़ने को तैयार हुई ऐसे लगा मानो मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कार रही हो। मैंने उसी क्षण निर्णय लिया कि मैं इसे अनकही दास्तान नहीं बनने दूँगी आखिर बहू की मौत का रहस्य उजागर होना ही चाहिए ताकि कुसूरवार को सजा मिल सके। मेरे हाथ स्वतः मोबाइल की ओर उठे ताकि मैं पुलिस को सूचित कर सकूँ। इसके लिए मैंने अपने आप को जरुरत पड़ने पर ‘महिला सेल‘ जाने के लिए भी तैयार कर लिया। मुझे आन्तरिक प्रसन्नता हुई कि मैं एक माँ व एक नारी होने के नाते एक सही निर्णय ले रही हूँ। आखिर कब तक बहू – बेटियाँ ससुराल में शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेलती रहेगी उन्हें भी तो तथाकथित सभ्य समाज में जीने का हक और अपनी निष्पक्ष बात कहने का अधिकार मिलना चाहिए।

श्रीमती दया शर्मा-गृहिणी महिला काव्य मंच मेघालय इकाई की सदस्य रचनाएं समाचार पत्र व पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। पूर्व इम्फाल (मणिपुर ) मे AIR मे casual announcer के तौर पर कार्यरत रह चुकी है। शिलांग AIR में भी विभिन्न विषयों पर कार्यक्रम देती है।

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