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Poesy - कवितायन

मैंं चााय हूँँ

अजित कुुमाार राय   |   ISSUE X

असम के बागानों से आता हुआ, 
बनाता एक सम रस समाज, 
पूस - माघ के शैत्य - निवारण के लिए
स्वागतोत्सुक जीवन की ऊष्मा!  
नीहार - तमसावृत परिवेश में
संकट के वाष्पन की तरह, 
थकान के बाद की स्फूर्ति, 
या कि गतिज ऊर्जा चेतना की।

किन्तु ग्रीष्माकुल पथिक के सम्मुख
मैं आता हूँ सभ्यता के विरक्तिकर अनुभव के रूप में। 
भोजपुरी में जाकर मैं चाह बन जाता हूँ, 
जिसे मेरे नवोत्थान - काल में 
बूढ़े लोटा में पीते थे, 
दूध के विकल्प के रूप में।
कुछ क्रान्तिकारी लेखक
चाय की प्याली में तूफान उठा देते हैं , 
जो काल के घर्घर रथ के पीछे
उड़ती धूल की तरह छूट जाता है।
चाय अतिथि के सम्मान का उपादान है। 
उसमें तैरती हैं, 
काफी हाउस की बहसों की तरल स्मृतियाँ।
चाय की भूख
भूख की चाह को मिटा देती है। 
आपके इस कथन से मैं सहमत हूँ। 
मैं एक नशा हूँ। 
गर्मी के दिनों में
दूध की जगह
मैं नीबू का साहचर्य अधिक पसन्द करता हूँ। 
मैं अनेक खट्टे - मीठे अनुभवों का साक्षी हूँ और
सम्बन्धों की संलिप्तता, 
अन्तर्वेशी विनियोग मानस का।
मैं विश्वव्यापी विमर्श हूँ बाजार का। 
मैं 'ताजमहल' का स्थापत्य हूँ और
एक समूचा आश्चर्य लोक हूँ। 
अजित कुमार राय, कन्नौज (उत्तर प्रदेश)


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अजित कुुमाार राय