डॉ अनीता पंडा
मूल खासी समुदाय अपनी संस्कृति, आस्था, मिथक, लोकगीतों आदि में बहुत धनी रहे हैं। डॉ पी. चौधुरी ने अपनी पुस्तक ‘The Antiquity of Khasi – Jaintia People’, ए.रॉय ने बंगाली मासिक पत्रिका 1993 में लिखा है – खासी समुदाय की अपनी असंख्य कहानियाँ, मिथक, लोककथाएँ उनके समाज में प्रचलित हैं, जो बहुत रुचिकर और विस्तृत हैं। अगर उन्हें सुनाया जाए तो ये कथाएँ पूरी रात भर सुनाई जा सकती हैं। इनका वर्णन इतना खुबसूरत है और घटनाएँ इतनी क्रमबद्ध हैं कि ये मनुष्य के दिल और दिमाग को छू जाती हैं। इन कहानियों और लोककथाओं द्वारा यह कल्पना की जा सकती है कि संभवतः खासी समुदाय में भी अपना साहित्य रहा होगा परन्तु दुर्भाग्यवश आज उसका कोई नामोनिशान नहीं है
खासी समुदाय में पहाड़ियों, पर्वतों, नदियों, जलप्रपातों, फूलों आदि के इर्द-गिर्द कहानियां बुनने और रिकार्ड रखने की परम्परा रही है लेकिन इन मिथकों तथा लोककथाओं में समयानुसार परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन भी आता रहा है। ऐसे में ये कथाएँ वास्तविकता से दूर भी लगती हैं। खासी लोक कथाओं का विश्लेषण और अध्ययन उनके पौराणिकता का एक भाग है, जिसने खासी धर्म, रीति-रिवाज और खासी संस्थाओं आदि को काफी प्रभावित किया है। इतने वर्षों के बाद भी आज तक वे इसे पूरी तरह से मानते आ रहे हैं। इनमें विशेष बात यह है कि ये खासी समुदाय की विचारधारा, धर्म, नैतिकता और सामाजिक तथा उनकी जीवन-शैली पर आधारित है ।
खासी समुदाय के पूर्वजों के अनुसार – आरम्भ में पृथ्वी पर कोई नहीं रहता था। ईश्वर, जो कि जगत का निर्माता है, उसने ‘का राम-ऐव’ (पृथ्वी) और उनके पति ‘उ बासन’ को बनाया। वे दोनों बहुत सुख पूर्वक रहते थे। उनके सुखी जीवन में उन्हें अकेलापन अक्सर सताता था क्योंकि उनका कोई संतान नहीं था। समय बीतता जा रहा था। वे अपने अकेलेपन से ऊब गए। ‘का राम-ऐव’ दिन-रात सृष्टि के निर्माता ईश्वर से प्रार्थना करती कि उसे वारिस चाहिए, जो उसके वंश को आगे बढ़ा सके। ‘का राम-ऐव’ की सच्ची प्रार्थना ईश्वर ने स्वीकार कर ली और उन्हें पांच संतानें प्रदान किये। ये संतानें थीं – सूर्य, चाँद, पानी, हवा और आग। इनमें सूर्य पहली संतान तथा आग आखिरी संतान थी। आग, आखिरी संतान होने के कारण उस पर घर के सारे काम और देखभाल करने की जिम्मेदारी थी ।
पांच संतानों को पाकर ‘का राम-ऐव’ बहुत खुश थी। उसे अपने फलते-फूलते परिवार पर गर्व था। अब धरती पर सूरज, हवा और पानी था। अत: वृक्ष उगे, सुन्दर-सुन्दर फूल खिले, भांति-भांति के फल लगे। सारी प्रकृति ही सुन्दर दिखाई देने लगी। ‘का राम-ऐव’ धरती पर कई मौसम और उनके विभिन्न रंगों आदि को देखकर प्रफुल्लित थी। यह देखकर कुछ समय बाद ‘का राम-ऐव’ ने ईश्वर से विनती की कि वे दया करके किसी को भेजें, जो संसार पर शासन करे और उसे अनुशासित करे। ईश्वर को ‘का राम-ऐव’ के अनुरोध में सच्चाई नज़र आई और उन्होने वादा किया कि वह उसकी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे ।
खासी मतानुसार उस समय स्वर्ग में सोलह परिवार ईश्वर के साथ सुख, शान्ति और भाईचारे के साथ रहते थे। ‘का राम-ऐव’ की इच्छा पूर्ति के लिए स्वर्ग में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया कि संसार पर शासन करने की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए?
इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के बाद यह निर्णय लिया गया कि स्वर्ग में ईश्वर के साथ रहनेवाले सोलह परिवारों में से सात परिवार, जो ‘की ह्न्यू त्रेप हन्यू स्कुम’ या ‘सात झोपड़ियाँ और सात घोंसले’ कहलाते थे, वे धरती पर जाएँ, खेती करें और उसे आबाद करें।
वे ईश्वर के आदेशानुसार धरती पर जाएँ और माँ की तरह ही धरती के विकास और उन्नति के लिए कार्य करें। वे प्रशासनिक दृष्टि से हर चीज़ की देखभाल करें। इस प्रकार ईश्वर ने ह्न्यू त्रेप हन्यू स्कुम और पृथ्वी को आशीर्वाद दिया। साथ ही यह कहकर अपनी बात समाप्त की कि अगर लोग स्वयं सही रास्ते पर चलेंगे; सच्चाई के रास्ते पर रहेंगे तो ईश्वर उनके साथ रहेंगे। उनके और स्वर्ग के बीच बिना किसी बाधा के आना-जाना होगा। वे एक पेड़ के द्वारा ‘जिन्किंग क्स्येर’ अर्थात् सोने की सीढ़ी जो ‘उ साॅपेतब्नेंग चोटी पर स्थित है, उससे स्वर्ग में आ-जा सकेंगे ।
सात झोपड़ियाँ अपना वचन निभाते हुए शांति और भाईचारे के साथ स्वर्ण युग में रहने लगे। उस समय स्वर्ग में निवास करने वाले नौ परिवारों और पृथ्वी के सात परिवारों के बीच सम्पर्क था और ईश्वर स्वयं भी धरती पर अक्सर आते-जाते रहते थे। वे उनसे मानव भाषा में ही बात करते थे। धीरे-धीरे कुछ समय बाद जीवन की हर दिन की व्यस्तता के कारण ये सात परिवार अपने दिए गए वचनों से दूर होते गए और उन पर कम ध्यान देने लगे। एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने इस स्थिति का लाभ उठाया क्योंकि उसे मानव के ऊपर ईश्वर और सच्चाई का राज करना अच्छा नहीं लगता था। अत: वह पृथ्वी और स्वर्ग से जोड़ने वाली सीढ़ी को काटने में सफल हो गया। परिणामस्वरूप धरती पर रहने वाले सात परिवार हमेशा के लिए बिछड़ गए। इस प्रकार ईश्वर के प्रभाव से भी हमेशा के लिए दूर हो गए। ईश्वर ने उनसे मानव-भाषा में फिर कभी बात नहीं की। ईश्वर को अपनी रचना अर्थात् मनुष्यों पर बहुत दया आई। यद्यपि वह उनसे इंसानी भाषा में बात नहीं कर सकते थे परन्तु वे उनसे अपने संकेतों आदि द्वारा बात करते थे ।
वे सातों परिवार इस विषय में कुछ नहीं किया केवल ईश्वर की आज्ञा का पालन करते रहे, वे बस टालमटोल करते रहे। कुछ समय बाद सपेटब्नेंग (पर्वत की चोटी) से पांच किलोमीटर दूर डेंगेई पीक / चोटी पर एक पेड़ उग आया। वह पेड़ कुछ ही समय में तेज़ी से बढ़ गया। उसकी शाखाएँ चारो ओर फैल गईं और इसकी पत्तियों ने पूरी धरती को ढक लिया। ऐसा लगने लगा कि दूसरी बनस्पतियाँ उसकी छाया में नहीं पनप सकेंगी। उस समय सारमो और सोराफिन नामक दो जिम्मेदार व्यक्ति डेंगेई चोटी की ढाल पर खेती कर रहे थे। उन्होंने इस घटना की जानकारी दरबार को दिया। उनकी बात सुनकर दरबार ने निर्णय लिया कि पेड़ को तुरंत कटवा दिया जाए क्योंकि अगर देर हो गईं, तो उस पेड़ की जड़ें और भी मज़बूत हो जाएँगी और उसकी शाखाएँ इतनी फ़ैल जाएँगी कि काटना मुश्किल हो जायेगा। उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी और दराती धार की और पेड़ काटना शुरू किया। दिनभर कठोर परिश्रम करने के बावजूद वे उस पेड़ का छोटा हिस्सा ही काट पाए। यह देखकर दरबार ने यह निर्णय लिया कि हर परिवार से कम से कम एक आदमी आएँगे और पेड़ काटने में मदद करेंगे। दूसरे दिन हर घर से एक-एक व्यक्ति पेड़ काटने चल पड़ा। जब वे उस स्थान पर पहुँचे, तो आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि उस पेड़ पर कटने के कोई निशान नहीं थे। इसके बाद भी उन्होंने फिर से पूरे दिन काम किया परन्तु अगले दिन भी वैसा ही हुआ। वे परेशान और भयभीत हो गए ।
जब वे आपस में बातचीत कर रहे थे कि दूसरे दिन क्या किया जाए, तो उस समय एक छोटा पक्षी ‘रेन बर्ड ’(phret) वहाँ आया। सबका उदास चेहरा देखकर उसने एक वृद्ध व्यक्ति से उनकी उदासी का कारण पूछा। पूरी बात जानकर रेन बर्ड ने कहा – मैंने चीता से सुना है कि जब डेंगेई बड़ा हो जाएगा और इसकी शाखाएँ चारो ओर फैल जाएँगी, इसकी पत्तियाँ और मोटी हो जाएँगी, तब चारो ओर गहरा अँधेरा छा जाएगा। तब मैं चारो ओर घूम सकूँगा और इन्सानों को कह सकूँगा। अत: रात में बाघ इस पेड़ पर पड़े कटने के निशान को चाट लेता है, जिससे यह पेड़ फिर से वैसा का वैसा हो जाता है। इसलिए तुम लोग कितनी भी कोशिश कर लो, इसे नहीं काट सकते। तुम लोग अपना काम करते रहो और घर जाने से पहले अपनी कुल्हाड़ी और दराती को कटे हुए भाग पर उल्टा करके रखना। उसकी धार सामने की ओर होनी चाहिए। जब बाघ उसे चाटने की कोशिश करेगा, तो उसकी जीभ कट जाएगी और वह फिर से चाटने की कोशिश नहीं कर सकेगा ।
अत: रेन बर्ड की सलाह से लोगों ने फिर से पेड़ काटना आरम्भ किया। उस रात हमेशा की तरह बाघ आया और उसने कटे हुए निशान को चाटना आरम्भ किया, तो उसकी जीभ धारदार हथियार से कट गई और वह दर्द से चिल्लाता हुआ जंगल की ओर चला गया परन्तु उस समय से उसने मनुष्य से बदला लेने की प्रतिज्ञा की। इस घटना के बाद से उसे जब भी मौका मिलता है, वह उस पर आक्रमण करता है।
लगातार कई दिनों तक पेड़ काटते-काटते और रात में धारदार हथियार को कटी हुई जगह पर रखते हुए उन्होंने अंततः पेड़ को पूरी तरह नीचा कर लिया। डेंगेई चोटी में क्रेटर की तरह एक गढ्ढा बना हुआ है। मिथक के अनुसार यह वही जगह है जहाँ पर पेड़ खड़ा था। इस प्रकार मनुष्य अपनी युक्ति से पेड़ को सफलतापूर्वक नीचा करके बहुत प्रसन्न हुआ परन्तु यह काम बिना ईश्वर के सम्भव नहीं हो सकता था। अत: उसने उनका आभार प्रकट करने के लिए पृथ्वी के सभी प्राणियों के लिए नृत्य का आयोजन किया।