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प्रति पल गहराती लहराती जा रही निशा की चुनरी ने जैसे राम की अयोध्या में वापसी के उत्सव को कुछ पलों का विराम दे दिया। कल के भोर की उजास में फिर मिलने का संकल्प लिये सब अपने कक्ष की ओर चल दिये। अंतर्मन की शांति और संतुष्टि का अनुभव करते हुए, भरत अपने कक्ष में पहुँचे तब देखा कि मांडवी जैसे एक उत्तरदायित्व पूरा हो जाने की संतुष्टि के साथ किसी उलझन की धूमिल रेखा अपने चेहरे पर लिए गवाक्ष के सम्मुख खड़ी थीं। भरत ने माण्डवी के कन्धे पर हाथ रखते हुए प्रश्न पूछती सी चुप्पी से उन धूप-छाँव सी सपनीली आँखों में देखा। माण्डवी की पलकें उठ गईं, “आपने सबके प्रति अपने कर्तव्य निबाहे, फिर मुझको क्यों और कैसे भूल गए? राम भैया का वनवास पिता महाराज के वचनों का पालन करने की उनकी इच्छा थी, साथ ही सीता दीदी एवं देवर लक्ष्मण का वन गमन उनकी। वनवासी जैसा जीवन जीना एवं राज्य की सुचारु व्यवस्था के लिए नन्दीग्राम में रहना आपकी इच्छा ... फिर मुझसे मेरी इच्छा जाने बिना ही क्यों राजमहल के दायित्व पूरा करने को यहाँ रहने के लिए कहा?” भरत के चेहरे पर अलग से ही भाव व्याप्त हो गए, “हाँ! सच कह रही हो! मुझसे यह त्रुटि हुई है। परन्तु इसका कारण तुमको स्वयं से अलग न समझना ही है। मैंने धनुष बाण को निशाना साधने के लिये अलग हाथों में पकड़ा जाता है, परन्तु संधान के लिए अनदेखे बिंदु पर दोनों मिल कर प्रयास करते हैं। धनुष के लचीलेपन की दृढ़ता तुममें ही है, इसलिए तुमसे बिना पूछे ही बाण की तीक्ष्णता अपना कर सब के प्रति दायित्वों का निर्वहन किया।” “परन्तु आपको क्या यह नहीं लगा कि मैं धनुष बनना चाहती हूँ कि त्रिशूल, जो हाथ में बने रह कर भी तीन शूल हर लेता है,” माण्डवी के शब्द सितारों से छिटक पड़े। “वस्त्र को सुन्दर एवं सुगठित रूप देने के लिए उसका अस्तर तमाम सिलवटों को सुई की चुभन के साथ ही अपने में समेट लेता है, वैसे ही पति-पत्नी दो सर्वथा अलग व्यक्तित्व होते हुए भी, सिर्फ इसी एक विशेषता के कारण, एक दूसरे की सिलवटों को समेटते हुए जीवनपर्यन्त साथ रह पाते हैं ...,” इन शब्दों के साथ भरत की आँखों में नेह भरी मनुहार की चाँदनी छलक गयी। |
प्रति पल गहराती लहराती जा रही निशा की चुनरी ने जैसे राम की अयोध्या में वापसी के उत्सव को कुछ पलों का विराम दे दिया। कल के भोर की उजास में फिर मिलने का संकल्प लिये सब अपने कक्ष की ओर चल दिये।
अंतर्मन की शांति और संतुष्टि का अनुभव करते हुए, भरत अपने कक्ष में पहुँचे तब देखा कि मांडवी जैसे एक उत्तरदायित्व पूरा हो जाने की संतुष्टि के साथ किसी उलझन की धूमिल रेखा अपने चेहरे पर लिए गवाक्ष के सम्मुख खड़ी थीं। भरत ने माण्डवी के कन्धे पर हाथ रखते हुए प्रश्न पूछती सी चुप्पी से उन धूप-छाँव सी सपनीली आँखों में देखा।
माण्डवी की पलकें उठ गईं, “आपने सबके प्रति अपने कर्तव्य निबाहे, फिर मुझको क्यों और कैसे भूल गए? राम भैया का वनवास पिता महाराज के वचनों का पालन करने की उनकी इच्छा थी, साथ ही सीता दीदी एवं देवर लक्ष्मण का वन गमन उनकी। वनवासी जैसा जीवन जीना एवं राज्य की सुचारु व्यवस्था के लिए नन्दीग्राम में रहना आपकी इच्छा ... फिर मुझसे मेरी इच्छा जाने बिना ही क्यों राजमहल के दायित्व पूरा करने को यहाँ रहने के लिए कहा?”
भरत के चेहरे पर अलग से ही भाव व्याप्त हो गए, “हाँ! सच कह रही हो! मुझसे यह त्रुटि हुई है। परन्तु इसका कारण तुमको स्वयं से अलग न समझना ही है। मैंने धनुष बाण को निशाना साधने के लिये अलग हाथों में पकड़ा जाता है, परन्तु संधान के लिए अनदेखे बिंदु पर दोनों मिल कर प्रयास करते हैं। धनुष के लचीलेपन की दृढ़ता तुममें ही है, इसलिए तुमसे बिना पूछे ही बाण की तीक्ष्णता अपना कर सब के प्रति दायित्वों का निर्वहन किया।”
“परन्तु आपको क्या यह नहीं लगा कि मैं धनुष बनना चाहती हूँ कि त्रिशूल, जो हाथ में बने रह कर भी तीन शूल हर लेता है,” माण्डवी के शब्द सितारों से छिटक पड़े।
“वस्त्र को सुन्दर एवं सुगठित रूप देने के लिए उसका अस्तर तमाम सिलवटों को सुई की चुभन के साथ ही अपने में समेट लेता है, वैसे ही पति-पत्नी दो सर्वथा अलग व्यक्तित्व होते हुए भी, सिर्फ इसी एक विशेषता के कारण, एक दूसरे की सिलवटों को समेटते हुए जीवनपर्यन्त साथ रह पाते हैं ...,” इन शब्दों के साथ भरत की आँखों में नेह भरी मनुहार की चाँदनी छलक गयी।
कई साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित निवेदिता श्रीवास्तव ‘निवी’ एक लेखिका, शिक्षिका और कलाकार हैं। अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री के साथ, उन्होंने मिशन स्कूलों में पढ़ाया है और मदर काउंसलर के रूप में काम किया है। लेखिका और कवयित्री के रूप में, निवेदिता ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में कई किताबें और कई लेख प्रकाशित किए हैं। वह एक साहित्यिक समूह, भाव कलश की संस्थापिका हैं।