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लघुकथा

पल्लू

Geeta Shukl Geet giगीता शुक्ला ‘गीत’   |   Spring 2025

काफी दिनों से नमिता अपनी अलमारी की सफाई को टालती आ रही थी। यहाँ तक कि दिवाली भी बीत गई।

दिवाली के दूसरे दिन परीवा की छुट्टी होने के कारण किसी को कोई जल्दी नहीं थी। सब कुछ आराम से हुआ। दोपहर में खाने-पीने से फुर्सत हुई, तो पूजाघर व्यवस्थित करते समय रीति अनुसार लक्ष्मी-गणेश जी का चाँदी का सिक्का आलमारी मे रखने के लिए आलमारी खोला तो लगा कि बस यही एक काम रह गया था। आज इसकी सफाई कर ही ली जाये। बस नमिता जुट गई सफाई में। सारी चीजें व्यवस्थित करने के बाद साड़ियों को निकाल कर पलंग पर रखने लगी।

अचानक एक साड़ी पर नमिता का हाथ रुक गया। उसने उस साड़ी को गहरी साँस लेकर सूँघा, मानों उसकी महक को अपने अंदर बसा लेना चाहती हो। उसके पल्लू पर नमिता ने बड़े ही प्यार से हाथ फेरा और अपने सीने से लगा कर आँखें बंद कर लिया। कुछ देर बाद उसने साड़ी को खोल कर देखा तो जगह-जगह से छेद हो गये थे। काफी पुरानी हो गई थी साड़ी लेकिन पल्लू आज भी दुरुस्त था। नमिता बार-बार बड़े प्यार से पल्लू पर हाथ फेर रही थी। ऐसा लगता था कि बहुत कीमती साड़ी थी। नमिता अपने ही ख़यालों मे गुम थी कि तभी शालू माँ! माँ! करती हुई पहुँच गई। उसने माँ के हाथों में ली हुई साड़ी को देखा और उछल कर बोली, “वाह! माँ कितनी प्यारी साड़ी है। रंग भी बहुत ख़ूबसूरत है और कपड़ा तो बिल्कुल मक्खन जैसा है। बहुत कीमती साड़ी है न माँकब ली आपने ये साड़ी?”

नमिता ने कहा, “गौर से देखो ये मेरे लिए अनमोल है।”  शालू ने उलट-पलट कर देखा और कहा, “अरे!  ये तो काफी पुरानी है। फट भी रही है फिर इसे क्यूँ इतना सँभाल कर रखा है अब तक आपने?” 

“तू पन्द्रह साल की हो गई लेकिन अब तक माँ का पल्लू पकड़ कर चलने वाली बच्ची है।”

“मेरी अच्छी माँ! अब छोड़िये न ये सब। पापा आपको बुला रहे हैं।  उन्हें कॉफ़ी पीना है, प्लीज आप बना दीजिये न माँ। सचमुच आप बहुत अच्छी कॉफ़ी बनाती है।”  नमिता ने अनसुना कर दिया और साड़ी को तह करने लगी। “माँ! चलिये न,” शालू ने माँ का पल्लू पकड़ कर बहुत ही भोली आवाज में कहा। नमिता ने बड़े प्यार से एक बार फिर पल्लू पर हाथ फेरा और उसे आलमारी मे टाँगने लगी । तभी शालू ने पूछा, “माँ! आपको बहुत प्यार है इस साड़ी और इसके पल्लू से।”

“शालू! तूने अभी मेरा पल्लू पकड़ा न, तो कैसा अनुभव हुआ तुझे?” 

शालू की बड़ी-बड़ी हैरत भरी आँखों ने माँ की नम आँखों को देख कर सब कुछ समझ लिया।


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Geeta Shukl Geet giगीता शुक्ला ‘गीत’