उम्र के ६०वें पड़ाव पर पहुँचने के बाद भारतीय मूल के अमेरिकन सेठ ने सेठानी से कहा, “बस अब बहुत हो गया, जीवन भर बहुत कमाया। अब आराम से घर में बैठूँगा और साहित्य सेवा करूँगा।”
“आराम से घर में बैठेंगे, तो घर का खर्च कैसे चलेगा? बिना आमदनी खर्च करते रहो, तो ख़ज़ाने भी खाली हो जाते हैं,” सेठानी ने ज्ञान परोसा।
“तुझे बताया ना अभी, साहित्य की सेवा करूँगा,” सेठ ने ज़ोर से कहा।
“आपकी साहित्य सेवा से तो पेट भरेगा नहीं,” सेठानी ने अपनी दलील दोहराई।
“तू बहुत नासमझ है, मैंने आज तक कोई सेवा बिना मेवा के नहीं की। तुझे मालूम नहीं साहित्य-संसार में ऐसे हज़ारों कवि और लेखक भरे पड़े हैं, जिन्हें कोई पूछता तक नहीं। उन्हें छपास की बीमारी है, बस उन्हीं कवियों के साझा संकलन प्रकाशित करूँगा।”
“उससे क्या होगा,” सेठानी ने जिज्ञासा से पूछा।
“उससे ये होगा कि सभी कवि अपने लिए कुछ प्रतियाँ ख़रीदेंगे। किताब की क़ीमत दुगनी रखी जाएगी फिर भी सभी सहर्ष पुस्तकों को ख़रीदेंगे और किताब पर अमेरिकन मुहर भी तो होगी। देखना, ख़ूब किताबें बिकेंगी। सेवा की सेवा, मेवा की मेवा।”
इन्दुकांत आंगिरस नई दिल्ली के एक बहुभाषी लेखक, कवि और अनुवादक हैं। वह हिन्दी, अंग्रेजी, हंगेरियन, ग्रीक, चेक, उर्दू और लिथुआनियाई सहित कई भाषाओं में कुशल हैं। उन्होंने कई कविता संग्रह, लघु कहानी संग्रह और अनुवाद प्रकाशित किए हैं, जिनमें एकल कविता संग्रह “शहर और जंगल” , लघुकथा संग्रह – “जन्नत की ट्रैन”, और हंगेरियन लोककथाओं का हिन्दी अनुवाद “तीन वरदान” शामिल हैं। अंगिरस परिचय साहित्य परिषद और सनद - ΣΑΝΑΔफाउंडेशन – दिल्ली के संस्थापक भी हैं और उन्होंने कई साहित्यिक पत्रिकाओं और समाचार पत्रों का संपादन भी किया है।