Ka Jingshai
RKMSHILLONG
Search:
Poesy - कवितायन

माँ ! सुन लो मेरी गुहार

Manju Bansal   |   Autumn 2025

माँ ! तुम अपना धैर्य न खोना,अगर बुढापा तुम्हें सताए।

दिन गुजरे यदि उहापोह में,रातों को नींद न आए।

स्नायु-तंत्र निर्बल हो जाए,मन का बल कम जो जाए।

विचलित कर दे क्रोध तुम्हें ज्यों,भला-बुरा समझ न आए।

गहरी सांसें ले लेना तुम,हौले से कई बार।

माँ ! सुन लो मेरी गुहार।।

जीवन का यह कठिन दौर है,हँसकर व्यतीत करना है।

अभिन्न हिस्सा यह जीवन का,इसपर हामी भरना है।

क्या हुआ पाँव बढ़े नहीं तो,हिया अभी द्रुतगामी है।

संकट आए मत घबराना,यह तो बहु आयामी है।

जीवन के इस शेष सफ़र में,तुम मत जाना हार।

माँ ! सुन लो मेरी गुहार ।।

यह जीवन सिर्फ परिस्थिति है,तुम्हीं बताया करती थी।

जीवन-पथ पर हँसकर चलना,तुम्हीं सिखाया करती थी।

गूढ़ पाठ मानव जीवन का,तुम्हीं पढ़ाया करती थी।

एक-एक कर हमें सीढ़ियाँ,तुम्हीं चढ़ाया करती थी।

अब चढ़ो सीढ़ियाँ स्वयं तुम्हीं,मंजिल है उस पार।

माँ ! सुन लो मेरी गुहार ।।

आज समय विपरीत है आया,तुम हो गई बालिका सी।

ईश्वर के चरणों में अर्पित,पावन पुष्प मालिका सी।

ईश्वर करुणा के सागर हैं,सारे भार उठा लेंगे।

जीवन नैया सहज सुलभ ही,भव के पार लगा देंगे।

दिवस गुजारो जप कर माला,नाव लगेगी पार।

माँ ! सुन लो मेरी गुहार ।।


-डॉ. ममता बनर्जी “मंजरी”, धनबाद (झारखण्ड)।
 


author
Manju Bansal