विसर्जन
जीवनभर की ज्वाला,
उच्चाकांक्षा की तड़प,
भविष्य के लिए कौतुहल,
जीवन संध्या की पीड़ा में
विसर्जित हो गई आज!
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रहस्य
मृतक के साथ खत्म
एक कहानी जीवन की!
ब्रह्मांड के रहस्य पर,
ब्रह्मांड की आँख-मिचौली
की कहानी शुरू!
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कर्तव्य
कर्तव्य की परिभाषा
समझना भी कठिन है!
वर्ना जल्लाद कर्तव्य
हँसकर क्यों पूरा नहीं
कर पाता!
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अंत
अनंत दिगन्त का
अन्त!
पहेली को सुलझाने
भटकता तन-मन!
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शिकायत
मानव क्यों शिकायत
करता है तू!
तुझे बनाने वाले को भी
है कितनी शिकायतें
तुझसे !
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क्षणिका
वक्त को पकड़ने की,
समझने की
कोशिश में कुछ शब्दों में
कही कहानी को
कहते है क्षणिका।
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गुनाहगार क्यों?
दर्दनाक चीखें,
आँसू, आहें, तड़प!
औरत होना अगर
नहीं है गुनाह,
तो फिर यह सजा क्यों?
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वात्सल्य
मृत्युमुखी माता
कहती संतान से ...
उम्र मेरी लगे
तुझको।
रुनू शर्मा बरुवा, "रागिनी तेजस्वी", जोरहाट